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Friday, November 12, 2010

तथ्य और कथ्य दोनों में ही व्यंग्य है.

आदरणीय नीरवजी आपके तो तथ्य और कथ्य दोनों में ही व्यंग्य है. जो चुभता भी है और गुदगुदाता भी है। आपके आलेख पढ़कर शरद जोशी की याद आ जाती है। वह भी ऐले ही घुमाकर गुगली मारते थे। नूतन कुमार नीचजी के क्या कहने-
जब मास्टरी और बैंक में चपरासीगीरी-जैसे प्रतिष्ठित टेलैंट हंट में नूतनजी प्रथम राउंड में ही एलीमिनेट कर दिए गए तो उनका असाधरण प्रतिभा का धनी होने का भ्रम दुर्दांत यकीन में बदल गया। और बस तभी से नूतनजी कविता कामिक्स के स्पाइडरमैन बन गए हैं। कहीं भी कविता पाठ हो रहा हो नूतनजी बिना आमंत्रण के सूंघते हुए वहां बैताल की तरह प्रकट हो जाते हैं। सूंघा शक्ति के मामले में नूतनजी दुनिया के किसी भी  स्निफर डाग से इक्कीस ही पड़ते हैं।  कितना भी दबा-छुपाकर कोई कवि सम्मेलन करे, नूतनजी वहां सबसे पहले बरामद हो जाते हैं। नूतनजी की कविताएं भले ही बासी होती हैं मगर नीचता के मामले में वे हमेशा ही नित नूतन रहते हैं। कवि बनने का होमवर्क नूतनजी ने बड़ी मेहनत से किया है। चांदनी चौक के पटरी बाजार को नूतनजी  ने ऐसे खंगाला हुआ है जैसे शाहरुख खान को न्यूयार्क एअरपोर्ट पर अमेरिकन सुरक्षा अधिकारियों ने खंगाला था। सुरक्षा अधिकारियों को भले ही शाहरुख खान से कुछ बरामद न हुआ हो मगर नूतनजी को कबाड़ियों के यहां से मंचोपयोगी लतीफों की किताबों का विशाल जखीरा मुप्त में ही मिल गया। इनकी तो किस्मत ही खुल गई.। 
और लिखिए.रोज लिखिए..
डाक्टर प्रेमलता नीलम

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