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Tuesday, November 9, 2010

मैं तो खुद अपने इलाके की समस्या हूं.,

 प्रतिक्रिया- झगड़े का एजेंडा
आदरणीय नीरवजी,
पालागन...
झगड़े की मानसिकता पर आपने जो आलेख लिखा है उसमें हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ कहानी का भी आनंद आया। आज हमारे देश के लोगों की मानसिकता ऐसी ही हो गी है कि जो झगड़ा नहीं करते उन्हें वे कुछ समझते ही नहीं है। इन पंक्तियों में आपने सब कुछ कह दिया है,और जो अनकहा रह गया है वह तो और भी मारक है-
ह बोला, मैं आपको ललकार रहा हूं और आप चाय की रट लगाए हुए हैं। मैंने कह.यही तो हमारी परंपरा है। हम बड़ी-से-बड़ी समस्या बातचीत से ही सुलझाने में यकीन रखते हैं। चाहे वो कश्मीर समस्या हो या नक्सलवाद की समस्या। हम सभी को बातचीत का आमंत्रण देते हैं। झगड़ा करनेवाले से बातचीत करने का हमारा पुराना रिकार्ड है। हम शांतिप्रिय देश हैं। शांतिप्रय लोग हैं। जो झगड़ा करते हैं मूलतः तो वे भी शातिप्रिय ही होते हैं। वे तो झगड़ा करके सामनेवाले के संयम और विवेक की छमाही परीक्षा लेते है,कोई सच्ची-मुच्ची में थोड़े ही झगड़ते हैं। झगड़ा करनेवाले से बातचीत के लिए हमारे पास हमेशा टाइम रहता है। बस बातचीत को वह तैयार भर हो जाए। बिना झगड़ा किए कोई हमसे बातचीत करने की धृष्टता करता है तो हमारे सुरक्षा अधिकारी उससे झगड़ कर के बंगले से बाहर फेंक देते हैं। अगर वो दोबारा झगड़ा करने आता है तो इस बार हमारे अधिकारी उसे भीतर जाने देते हैं। यहां अब इसे हमारा पीए अपमानित करता है। उसका फिर पीए से झगड़ा होता है। अगर वो पीए को भी झगड़े में रगड़ देता है तो पीए हमसे आकर कहता है कि कि जेनुइन पार्टी है। इससे आपको जरूर मिलना चाहिए। पीए की रिकमंडेशन पर हम बड़ी गर्जोशी से उसे अंदर बुलाते हैं,उसे चाय भी पिलाते हैं और उसकी समस्या क्या है यह जानने का भरपेट प्रयास करते हैं। अभी एक सज्जन रोज़ आकर मेरे गार्ड और पीए से झगड़ा कर रहे थे। जब सारे चक्रव्यूह पार करके उन्हें मुझसे मिलने का मौका मिला। हमने उनकी समस्या जाननी चाही तो वह बोला- मेरी तो कोई समस्या ही नहीं है। मैं तो खुद अपने इलाके की समस्या हूं.,भैयाजी। आप चाहो तो खुद पता कर लो। मैं तो आपका प्रशंसक हूं और आपके लिए पांच किलो घी लेकर आया हूं। शहर का होता तो मक्खन लेकर आता। गांववाले मक्खन नहीं लगाते। लीजिए, मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। वैसे कोई समस्या खत्म करनी हो तो हमें याद कीजिएगा। अपनी घनी मूंछों में वह मुस्कराया। यदि कोई समस्या खड़ी करनी हो तो भी बंदे की सेवाएं लेना मत भूलिएगा। हमारी हुनरमंदी देखिएगा।.लगता था कि वो अपने झगड़े के खानदानी कारोबार के जनसंपर्क पर निकले थे। शायद किसी झगड़ा संस्थान के सीईओ जरूर रहे होंगे। कुछ ऐसी ही ठसक और खनक थी उनकी आवाज़ में। बड़े सदभाव के वातावरण में वे विदा हुए। अब आप समझ गए होंगे कि मैं आपको चाय पिलाने को क्यों इतना आतुर हूं। आप भी शरीफ आदमी हैं। क्योंकि हर झगड़ा करनेवाला हमारी नज़र में शरीफ होता है। और प्रभु कृपा से आपकी तो सूरत भी मियां नवाज शरीफ से काफी मिलती है। क्रोध की हवा से भरे गुब्बारे में मैंने चतुराई की कील चुभा दी थी। और अब क्रमशः उसे दयनीयता की हद तक पिचकता हुआ मैं देख रहा था। जैसे किसी खास प्रबल-प्रचंड प्रतिद्वदी की मुझे घोटाले की फाइल मिल गई हो।
-हीरालाल पांडे

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