आज पंडितजी आपने जो करुणाऔर मैत्रैय भाव से होते हुए सत-चित और आनंद की व्याख्या की है,वह अभूतपूर्व है। और आपकी मानसिक ऊंचाई और गहराई दोनों को दर्शाती है। बात शुरू हुई थी आस्थाएं आत्मघाती होती हैं उस पर जो आपने वैज्ञानिक विश्लेषण किया है उससे यह तो तय हुआ कि आस्था ईश्वर प्रदत्त शक्ति हैजो आदमी को ईश्वर ने दी है और उसने उसका दुरुपयोग किया तो वह आत्मघाती हो गई। प्रशांत योगी के आलेख पर आपकी टिप्पणी बहुत सार्थक है। श्री विश्वमोहन तिवारीजी का लेख समसामयिक है। और कई विचार छोड़ता है। कुल मिलाकर आज ब्लाग पर काफी सारगर्भित सामग्री पढ़ने को मिली।
डाक्टर मधु चतुर्वेदी

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