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Saturday, January 1, 2011

जब मैं था तब हरि नहीं
    सूफी-मत की राबिया इस विचार-धारा की एक अग्रणी संत रहीं हैं !राबिया के
शिष्य अल-दीन अत्तार एक दिन राबिया की कुटिया पर दर्शनार्थ पहुंचे और दरवाजे पर दस्तक दी !अन्दर से राबिया की
आवाज आई -"कौन है?" प्रत्युत्तर में शिष्य ने कहा -"मैं "! राबिया खामोश रहीं और दरवाजा नहीं खोला !काफी देर तक दरवाजा नहीं खुला तो शिष्य ने पुनः कहा -"आपका शिष्य फरीद-अल-दीन अत्तार"! राबिया ने दरवाजा खोल दिया ! ये मात्र एक घटना नहीं ,दर्शन है !
"मैं " के लिए पैगम्बरों के दरवाजे हमेशा बंद रहे हैं !अहंकार के लिए ईश्वर के घर में कोई जगह नहीं होती !राबिया ने इंगित कर दिया अपने शिष्य को क़ि "मैं "और ईश्वर एक जगह नहीं हो सकते !कोई भी सच्चा गुरु तुम्हे तुम्हारे "होने " की शिक्षा नहीं देगा ,क्यों क़ि "होना "अहंकार का द्योतक है !गुरु तुम्हे मिटना सिखाएगा ,और तुम मिटे तो समर्पित हो गए !शरणागत हुए तो अहंकार छूट गया !अहंकार गिरा तो प्रेम के झरने अवश्य झरेंगे !प्रेम-मय हुए तो ईश्वर के द्वार अपने आप खुल जायेंगे !राबिया कहती है क़ि "मैं "कहने का अधिकार केवल ईश्वर को है !अहंकार को लेकर अगर तुम ईश्वर के पास जायोगे तो केवल स्वयंम को ही देख पायोगे !अहंकारी व्यक्ति आत्म-केन्द्रित होता  है ,और आत्म-केन्द्रित व्यक्ति भगवत्ता को उपलब्ध नहीं हो सकता !
                                       कबीर कहते हें -" जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि है मैं नाहिं " तुम्हारा अहंकार गिरा क़ि तुम ईश्वर के अंश हो गए !तुम्हारा अपना अस्तित्व समाप्त हो गया ,और तुम ईश्वर की सत्ता का हिस्सा बन गए !अपने को मिटा डालने की प्रक्रिया है प्रेम !प्रेम ,जहाँ केवल समर्पण होता है और कर्ता मिट जाता है !अगर कर्ता भाव होगा तो कारण भी होगा ,लेकिन प्रेम तो अकारण है !समझोते नहीं होते प्रेम में !शर्तों में प्रेम का अंकुरण नहीं हो सकता !शर्तें तो जीवन यापन के लिए होती हैं ,प्रेम तो मिटने की कला है !......मीरा ने कृष्ण को किन्हीं शर्तों में नहीं बांधा,कोई उपाय भी नहीं था !पाँच वर्ष का था मीरा का बचपन ,जब वह कृष्ण-मय हो गई थी !मीरा के घर के पास से कोई बारात निकल रही थी क़ि मीरा निश्छल भाव से पूछ बैठी अपनी माँ से -"माँ मेरी शादी किससे करोगी?"और माँ ने भी सहज भाव से कृष्ण की प्रतिमा की तरफ इशारा कर दिया -"ये गिरधर गोपाल हैं ,इनसे ही तेरी शादी होगी !" बचपन कृष्ण को समर्पित हो गया !मीरा मिट गई !मीरा अगर मीरा रहती तो शायद कृष्ण से वंचित रह जाती !कर्ता ही नहीं रहा तो अहम् को भी विसर्जित होना ही था ! प्रेम के इतिहास में मीरा सबसे बड़ी घटना है !प्रेम ,जहां शरीर अपना अर्थ खो देते हैं !प्रेम,जहां वर्जनाएं निष्प्राण हो जाती हैं !
                                  "प्रेम गली अति साँकरी,ता में दो न समाय !"होने में प्रेम अपना अर्थ खो देता है !दो होंगे तो प्रेम को जगह नहीं मिलेगी !प्रेम अकारण समर्पण का नाम है ,जो ध्यान से उपजता है !ध्यान,जहां ध्यानी भी नहीं रहता ,केवल ध्यान रहता है !ध्यान से अंकुरित प्रेम ही अंततः आध्यात्मिक प्रेम बनता है !एक ऐसा आध्यात्मिक प्रेम जिसमें डूबकर व्यक्ति आत्म-केन्द्रित न होकर सारे जगत का हिस्सा बन जाता है !ध्यान ही है जो तुम्हारे अहंकार को गिराता है !ध्यान मार्ग है और प्रेम परिणाम !आध्यात्मिक प्रेम में गहरे उतरे तो आत्म-जागरण अवश्य होगा !चैतन्यता को उपलब्ध हुए तो धर्म,जाति, सम्प्रदायों और भोगोलिक रेखायों की सभी वर्जनाएं मिट जायेंगी !
                                 कुछ त्यागने की प्रक्रिया से अहम् से छुटकारा नहीं मिलेगा ,क्यों क़ि त्यागने से त्यागी होने का अहंकार घेर लेगा !केवल साक्षी भाव रखना है , चाहे बंगला है या छोटी सी कुटिया ,तुम्हारा नहीं है !सच तो ये है क़ि तुम स्वयंम भी अपने नहीं हो ,मात्र आत्म-वंचना में जी रहे हो !ध्यान "होने "या "न होने " के पार है !क्यों क़ि "न होने " में भी ये स्वीकार तो कर रहे हो क़ि कुछ था !तुम्हारा कुछ था ही नहीं तो कुछ छोड़ने का कोई रास्ता नहीं !यही यथार्थ है !अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !

प्रशांत योगी ,यथार्थ मेडिटेशन इंटरनेश्नल ,धर्मशाला, (हि. प्र. ) 094188 41999

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