विभीषण ने सलाह उचारी। सुनो श्रीराम विनय हमारी। ।
तट पर धरना दो सविनीता। सागर आयेगा भयभीता । ।
विभीषण ने सलाह दी। हे राम!सुनो आपसे मेरी विनय है। सागर तट पर सविनीत धरना दीजिये। समुद्र भयभीत होकर आयेगा।
यह जलधि सगर ने खुदबाया। आप के हि वंशज बतलाया। ।
यह बिलोक विशाल जलधारा। यह पार नहीं होय सुखारा। ।
हे प्रभु!यह समुद्र राजा सगर ने खुदबाया था। उनको आपके ही वंशज बतलाते हैं। यह देखकर समुद्र की विशाल जलधारा और ऊपर उठ आयी। राम बोले कि यह आसानी से पार नहीं होगी।
धरना देते रामजी, बीतीं रजनी तीन।
समुद्र आया नहिं वहाँ, प्रभु कुपित समीचीन। ।
राम समुद्र तट पर धरना देते हैं। राम को धरना देते तीन रात बीत गयीं। परन्तु समुद्र वहाँ नहीं आया । प्रभु श्रीरामजी बहुत कुपित हुए।
राम ने तब बाण संहारा। चारों ओर घोर टंकारा। ।
समुद्र में व्याप्त महावेगा। कम्पित जलचर दृग संवेगा। ।
राम ने तब वाण का संहार किया। चारों ओर घोर टंकार हुई। समुद्र में महावेग आ गया। संवेग को देखकर जलचर काँपने लगे।
लखन ने दूजा बाण रोका। प्रभु!जलधि को दो न अरु शोका। ।
बस करो व्योम संत पुकारे। समुद्र नष्ट, न हितू हमारे। ।
लक्ष्मण ने राम को दूसरा वाण रोकने के लिए विनय की। हे प्रभु! समुद्र को और दुःख मत दो। आकाश से देव और संत पुकार रहे हैं कि बस करो, राम! समुद्र का नष्ट होना आपके हितकर नहीं है।
राम ने कहें शब्द कठोरा। सुखाऊँ तुझे पड़ पय तोरा। ।
तू जलधि बहु गर्व गर्वीला। कपि उतरें पार धर्मशीला। ।
राम ने समुद्र से कठोर शब्द कहे, मैं तुझे सुखा दूँगा, जल की कमी पड़ जायेगी। समुद्र! तुझे बहुत गर्व है। मेरे धर्मशील वानर पार उतरेंगे।
सह्रदय शील श्री रघुनाथा। स्वचरणों में लखा एक माथा। ।
द्रवित गदगद धर्म अनुयायी। अरि भ्राता को लिया उठायी। ।
श्रीराम अति सह्रदयशील हैं। राम ने एक माथा अपने चरण छूते हुए देखा। धर्मानुयायी श्रीराम उसे देखकर द्रवित और गदगद हो गए। राम ने दुश्मन के भ्राता को गोद में उठा लिया।
रचयिता--भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति --योगेश
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