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Friday, January 21, 2011

गुस्से  में  एक ही ग़ज़ल दो बार पढ़  ( पोस्ट  )डाली ! और नीचे  "भजन " रेस्तरां  का नाम देकर  "तड़का " भी लगा दिया  !  नाम तो तीन थे , आपको ही गुस्सा क्यों आया ? मैं मंजु ऋषी  की   सहजता  का कायल हूँ   ! नीलम  जी की खामोशी भी   sense  of humor का परिचायक है ! मंजु ऋषी और  डॉ  नीलम दोनों ही  अच्छी  रचनाकार हैं  ,और इतनी ही अच्छी  इंसान भी  ,मेरी सोच है ! रहा आपकी कृतियों का ,तो मैंने वो अपने  छोटे  से  पुस्तकालय  में  मीर , ग़ालिब  , फैज़   ,साहिर ,और बद्र के बराबर में  रक्खी हैं ! आपकी लेखनी से मेरा साक्षात्कार  हो चुका है , मैं आदर करता हूँ  ! लेकिन  रचनाओं और  व्यक्तित्व  में एक- रूपता नहीं !  परिभाषित मत कीजीये , व्यक्तित्व  स्वयंम बोलेगा  !
                                  आपने ही कहा था कि  आप  की -बोर्ड पर  स्वयंम को बहुत  सक्षम नहीं पाती  अतः  नीरव जी को  अपनी रचनाएं    dictate  करती रहतीं हें !  ज़ाहिर सी बात है ,पास -वर्ड  उनके पास होगा , बस इतनी सी बात थी ! कलम तो नीरव है तेरी ,पल रहे कई और हैं ! को अंक गडित  ना बनाएं  ! अगर मैं गलत हूँ तो  कम-स -कम  बाकी दो का इशारा तो समझें ! छोटी-छोटी  बातों पर  खिन्न  होंगी तो बहुत कम लोग रह जायेंगे  वाह-वाह करने  के लिए !
इस रूह की नरमी के कुछ सख्त तकाजो से|
ईमान बचाने को, ईमान से गुज़रे हैं||
          वाह, लाज़बाब शेर है ..........प्रशांत योगी  

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