Comments (1) Published on February 17, 2011 at 8:07 am by अभिषेक मानव
प्रश्न भी वही थे उत्तर भी वही था
प्रधानमंत्री ने आखिर में चैनल कांफ्रेंस का रोमांचक मुकाबला किया. एक तरफ खुद जिल्ले-इलाही थे तो दूसरी तरफ देश के चौथे स्तंभ की नत्थ समझे जाने वाले टीवी चैनलों के देशभक्त पत्रकार. वो सभी पत्रकार देश के प्रधानमंत्री के साथ कबड्डी खेल रहे थे. मनमोहन सिंह को अपराधी समझकर तरह तरह के दिव्यास्त्र चलाये जा रहे थे.
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा था. ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री होना ही सबसे बड़ा गुनाह है. खुद पत्रकार भी तो इसी दलदल में फंसे दिख रहे हैं. फिर उन्हें दूसरों से प्रश्न करने का अधिकार ही क्या है ? आदरणीय राजदीप सरदेसाई भी अंग्रेजी भाषा में चौचक आत्मविश्वास का परिचय दे रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे राडिया प्रकरण अब पूरी तरह समाप्त हो चुका है.
चैनलों द्वारा भेजे गए तथाकथित पत्रकार सचमुच पत्रकार थे अथवा आवाज के मजदूर इसका आंकलन करना अभी भी बाकी है. पूरी कांफ्रेंस को देखने-सुनने के बाद देश की मानव जाति सोच में पड़ गई. यदि वास्तव में प्रधानमंत्री अपने पद से इस्तीफा दे दें तो क्या भ्रष्टाचार पूरी तरह से मिट जाएगा ? आज जब आक्सीजन में भ्रष्टाचार घुल मिल गया है तब सबसे बड़ा प्रश्न है कि कौन है जो भ्रष्ट नहीं है ! और जो भ्रष्ट नहीं है उसे जीने कौन देता है !
जब न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया के रोम रोम में भ्रष्टाचार है तो किसी खास व्यक्ति, खास संस्था, खास पार्टी या किसी एक पक्ष को ही उजागर करने से क्या होगा ? आज भारत माता अपने डेढ़ अरब बच्चों की आंखों में आंखें डालकर पूछ रही है कि क्या वो मनुष्य रह गए हैं ? क्या जीवन रूपी यात्रा वृत्त के केन्द्र में मनुष्यता की जगह द्वेष और भ्रष्टाचार प्रतिष्ठापित नहीं हो गया है ?
आज कौन सी अनैतिकता, अत्याचार या भ्रष्टाचार इस देश के क्षितिज पर प्रतिष्ठापित नहीं है ! आज कोई भी व्यक्ति अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकता ? हर व्यक्ति दोषारोपण करना ही अपने मुख्य व्यवसाय बना चुका है.
बहरहाल उन चैनलों के किसी भी पत्रकार के चेहरे पर कोई कांता नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे पूरा मैच ही फिक्स था – प्रश्न भी वही थे, उत्तर भी वही था. पूछने वाले भी वही थे जवाब देने वाला भी वही था, जैसे पहले के नाटकों में हम देख चुके हैं. परन्तु हमलोग कैसे हैं कि हमें कबीर, बुद्ध, गांधी, भगत सिंह, नेता जी, दीनदयाल, जय प्रकाश नारायण को पहचानने में वर्षों लग जाते हैं, जबकि ऐसे नाटकों के मंचन कर क्षण-क्षण, पल-पल बहस करते रहते हैं.
खैर, छोड़िये ये बड़े लोग हैं. मैं तो बहुत छोटा आदमी हूँ. आप लोग मेरी बात क्यों सुनेंगे ! आप चैनल कांफ्रेंस का आनंद ठीक उसी प्रकार लीजिए जिस प्रकार शीला और मुन्नी का लिया.
- अभिषेक मानव
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