भौहें चढ़ी हुई हैं चेहरा भी लाल है
जलवों का उसके देखिये कैसा जमाल है
अखबार जब से देख लिया ज़ोहराजबीं ने
संसद की तरह हो रहा घर में धमाल है।
कश्मीर है तुम्हारा या हमारे बाप का
पुश्तों से नहीं सुलझा ये ऐसा सवाल है।
रिश्वत के जुर्म में जो बर्खास्त हो गया
रिश्वत खिला के हो गया फिर से बहाल है।
हासिल फ़तह मक़बूल इन्हें हो या फिर उन्हें
मुर्ग़े को हर इक हाल में होना हलाल है।
मृगेन्द्र मक़बूल
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