जो शब्दों के पार मौन की पश्यंती में बतियाती है उसको आप्तवाणी में प्रशांत कहते हैं. आदरणीय महर्षि श्री नीरवजी ने पारिभाषित किया है. ये बात उन्होंने प्रशांत योगी होने के अर्थ में संग्यानित की है ऐसा ज्ञान देने के लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ. मेरे पालागन.
भगवान सिंह हंस
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