मशहूर शायर क़ज़ी तनवीर राष्ट्रीय एकता और सद्भाव के कवि और शायर हैं। कवि सम्मेलनों और मुशायरों में बड़े चाव से सुने जाते हैं। जल्दी ही इनकी गज़लों की पुस्तक रूप और रंग सापेक्ष प्रकाशन से आ रही है। पेश हैं उनकी होली की कविताएं। होली की मस्ती को इन्होंने अपनी शायरी में बड़े शोख़ अंदाज़ में ढाला है और बड़ी मीठी-मीठी चुटकियां भी ली हैं-
जो पिचकारी कन्हैया खोलते हैं
फज़ा में रंग अनेकों घोलते हैं
वो सचमुच इस अदा से बोलते हैं
कि तन-मन गोपियों को डोलते हैं।
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अजब मौसम रंगीले हो रहे हैं
सभी तो लाल-पीले हो रहे हैं
हया से गोरियां शरमा रही हैं
कवा के बंद ढीले हो रहे हैं।
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जिसे भी देखिए होली चढ़ी है
बिरज में हर तरफ हलचल मची है
यहां सब फाग में डूबे हुए हैं
जो पहले थी वो मस्ती आज भी है।
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महक महुए की बिखरी है फजाओं में
बदन सचमुच नशीले हो रहे हैं
सुना है इस बरस उन गोरियों के
अधिकतर हाथ पीले हो रहे हैं
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बिरजवाले जो होली खेलते हैं
अदाएं गोरियों की झेलते हैं
सहारा ले के फिर अठखेलियों का
वो एक-दूजे को आगे ठेलते हैं।
प्रस्तुतिः मुकेश परमार
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