एक लंबे अर्से के बाद आज ब्लॉग देखा. अनेक नए हस्ताक्षरों से परिचय हुआ. पंकज अंगार, रविन्द्र शुक्ला, अरविन्द योगी, सुजाता मिश्रा, विशाल क्रांतिकारी, पूनम दहिया, नित्यानंद तुषार, सुरेश ठाकुर सभी की रचनाएं भावपूर्ण एवं सुन्दर हैं. लोकमंगल का प्रचार प्रसार दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा है. यह देखकर हार्दिक प्रसन्नता है.
पं. नीरव को बधाई! अपनी एक क्षणिका प्रस्तुत कर रही हूँ-
राह चलते सत्य से हुआ आकस्मिक परिचय-
आदतन कहा-
"बड़ी प्रसन्नता हुई आपसे मिलकर"
तभी हुआ पीछे से, कंधे पर -
एक परिचित स्पर्श.
मुड़कर देखा, झूठ था.
"क्षमा कीजिये" सत्य से कहा-
और चल दिये-
झूठ के हाथ में हाथ डाल!
डॉ. मधु चतुर्वेदी
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