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Saturday, March 5, 2011

खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो..


मक़बूलजी,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। पढ़कर मज़ा आ गया। 12 तारीख को टीवी की रिकॉर्डिंग के लिए दिल्ली आ रहा हूं। मुलाकात होनी चाहिए। खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो..
जगदीश परमार
सुनते ही जिन को आँख से आंसू निकल पड़ें
अशआर हमें ऐसे सुनाती है ज़िन्दगी।

पल भर में गिराती है कभी आसमान से
पल भर में कभी ऊंचा उठाती है ज़िन्दगी।

ख़ुश हों तो हमें पल में हंसाती है ज़िन्दगी
अपने पे अगर आए रुलाती है ज़िन्दगी।

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