" रोटी का टुकडा"
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वो-भिड गये
वहां था ,एक रोटी का टुकडा।
नही की बहते लहू की चिन्ता
...अपितु- बढाली प्यास
रक्त पिपासु बनने की
क्योंकि ?-
था वहां रोती का एक टुकडा।
नदिया समन्दर दर समन्दर हो गयी
थाह पाने की
मिटाके हस्ति अपनी
और- एक और-
हस्ति बनाने की
पर मिटा ना पायी
बीच मे बान्ध सा-
बन बैठा था
एक रोटी का टुकड़ा।
++++++++++++++गोविन्द हांकला
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