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Tuesday, April 12, 2011

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

बृहद भरत चरित्र  के कुछ प्रसंग आपके दर्शनार्थ-


भरत ने राम दर्शन कीना. हाथ जोड़ खड़ा समीचीना .
पुलकित भरत हर्षित शरीरा. चौदह वर्ष बाद द्रग बीरा.

हे भक्तजनों! भरत ने भरत ने राम के दर्शन किए और करबद्ध खड़े हो गए. भरत का शरीर पुलकित है और हर्षित हो रहा है. भरतजी  कहते  हैं कि मैंने अपना भाई चौदह वर्ष बाद देखा है.

इंद्र समान सुशोभित रामा. साथ सोहि सीता जस भामा.
घुंघराली लट नेत्र विशाला. सत्य पराक्रमी जगत पाला.

राम इंद्र के समान सुशोभित हैं. साथ में उनकी प्रिय  पत्नी सीता शोभित हैं. राम की घुंघराली लटें हैं और उनके नेत्र विशाल हैं. राम सत्य-पराक्रम वाले हैं और वह है ही इस जगत के पालनहार हैं.

तन पर पहनें वल्कल चीरा. अँखियाँ ओझल झलके नीरा.
प्रभु ने भरत ऊपर उठाया. कर में भरकर अंक लगाया.

भरत तन पर वल्कल चीर पहने हुए हैं. उनकी अँखियाँ ओझल-सी दिखाई देती हैं. भरत की आँखों में आंसू झलक रहे हैं. देखकर प्रभु राम ने भरत को विमान में ऊपर चढ़ा लिया और अपनी बांहों में भरकर अंक से लगा लिया.

प्रभु      समीप    सानंद विभोरा . साष्टांग जु    कैकेयी छोरा.
भरतहि लेय लक्ष्मण प्रणामा. सिय को प्रणाम बाते नामा.

भरतजी प्रभुराम के सान्निध्य में आनंद विभोर हो जाते हैं. कैकेयीलाल श्री राम को साष्टांग प्रणाम करते हैं. भरत लक्ष्मण का प्रणाम स्वीकार करते हैं. भरतजी सीता को करबद्ध प्रणाम करते हैं और अपना नाम बताते हैं.

प्रफुल्लित     कैकेयी     कुमारा. मिला   सुग्रीवहि सहदुलारा.
अंगद नल नील जाम्बवाना. सुषेण ऋषभ द्विविद सम्माना.

कैकेयीकुमार बहुत प्रफुल्लित हैं. भरतजी सुग्रीव से बड़े स्नेह से मिलते हैं. भरतजी अंगद, नल,  नील, जाम्बवान, सुषेण, ऋषभ, द्विविद आदि से बड़े सम्मान से मिलते हैं. 

मैंद गवाक्ष शरभ सत्कारा. गंधमादन पनस मिल प्यारा.
सर्व वानरहि मनुष्यरूपा.  गदगद भरत बिलोक स्वरूपा.

भरतजी मैंद, गवाक्ष, शरभ, गंधमादन और पनस से आदि वानरों का बड़ा सत्कार करते  हैं. और सस्नेह उनसे मिलते हैं. सभी वानर मनुष्यरूप में हैं. भरतजी गदगद होकर उस स्वरूप को देखते हैं. 

विभीषण से आलिंगन कीना. भ्रात स्नेह भरत समीचीना.
औ, कहा   तू   पांचवां    भाई. राम    संग    उपकार  सहाई.

भरतजी  विभीषण से आलिंगन करते हैं. भरतजी का भ्रात्र-स्नेह कितना समीचीन  है. भरत ने विभीषण से कहा कि तुम मेरे पांचवें भाई हैं जो तुमने राम के साथ उपकार किया है, वह बहुत ही सराहनीय है. 

भाषि भरत हे राक्षसराजा. कीन्ह सफल प्रभु दुष्कर काजा.
यह बड़े सौभाग्य की बाता.    मित्र  मदद से भ्रात सिहाता.

भरतजी ने कहा कि हे राक्षसराजा! तुमने प्रभु का दुष्कर कार्य सफल करा दिया है. यह बड़े सौभाग्य की बात है. मित्र की मदद से भाई बहुत सिहाता है

नीचे उतरे प्रभु श्रीरामा .     कैकेयी को      करें प्रणामा.
मात कौशल्या कान्तिहीना. ससुमित्रा प्रणाम समीचीना.

प्रभु श्रीराम पुष्पक विमान से नीचे उतरे और माता कैकेयी को सर्वप्रथम प्रणाम किया. माता कौशल्या कांतिहीन -सी दिखाई देती है. राम ने माता सुमित्रा सहित माता कौशल्या को प्रणाम किया.
रचयिता- महाकाव्य 

प्रस्तुति- योगेश विकास   




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