आदरणीय डा० विपिन चतुर्वेदीजी प्रणाम. आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. आपको बहुत-बहुत बधाई. निम्न पंक्तियाँ लाजवाब लगी-
गीत बन तेरे अधर पर छा गया मैं.
तुम बुलाना चाहते थे आ गया मैं
श्रे राजमणिजी प्रणाम. आपकी विरचित गुब्बारे की कविता बेहतरीन है. आपको ढ़ेर सारी बधाई. निम्न पक्तियां बहुत पसंद आयीं -
थोडा ऊपर उठ जाएँ तो
औकात भूल जाते हैं.
जय लोकमंगल
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