हमसे न पूछिए कि तुम्हें याद नहीं करते हैं.
नीरवजी से पूछिए हम भी पालागन करते हैं.
मुलाकात होती है तो धूप में शाम होती है.
फुहारे भी झूम दिल-ऐ- सिरहन करते हैं.
श्री पंडितजी! आपको बहुत-बधाई इतनी दर्दे-ऐ -दिल गजल के लिए. निम्न दर्द भरे sher बहुत पसंद आये-
गुनगुनाती साँस की रेशमी काँच में .
धूप सुबह की होकर उतरता हूँ मैं .
कह्कहें की उमड़ती हुई भीड़ में
हो के नीरव हमेशा निखरता हूँ मैं
दिल से जब भी तुझे याद करता हूँ मैं
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जब कसकती टीस से संवरता हूँ मैं.
तो गहरे आनंद सागर में भंवरता हूँ मैं
-हंस
-हंस
पालागन, आदरणीय श्री मकबूलजी
आरजू-ऐ- बहार है हमको.
आपका इन्तजार है हमको.
बहुत-बहुत बधाई इतनी उम्दा गजल के लिए.
जब बूँद समंदर में गिरती है.
खुद को मेट समंदर बनती है.
-हंस
-हंस
जय लोक मंगल
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