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Tuesday, June 28, 2011

चार कदम रह गया किनारा

सुरेश नीरव जी को अफ्रीका यात्रा के बाद लोटने पर बहुत बहुत बधाई। हमको तो उनके आने से जितनी ख़ुशी हुई है उतनी महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर भी नहीं हुई थी। महात्मा जी अफ्रीका गए तो इंग्लेंड के सिले हुए शूट में थे किन्तु जब लौटे तो एकदम देशी , काठिया वाड़ी लिबास में। सुरेश जी का रंग लौटने पर कैसा हुआ ये तो देख नहीं पाया, लकिन श्री सत्यव्रत जी वह हिंदी के कोण से झंडे गाड़कर आये इसका अध्ययन जरूर रोचक होगा। इसी दोरान एक दुर्घटना और हो गई। मैं अमृत आयु को पर कर गया और अब गर्व से कहे सकता हूँ की लो मैं तो किनारे तक आ पहुंचा।

चार कदम रहे गया किनारा
अभी यहाँ कीचड़ भी होगा

पाँव लताओं मैं उलझेंगे

चप्पल पाँव से फिसलेगी

लेकिन तट पर पहुचेंगे ही

अब तो यारा कूद नाओं से

पार उतरकर , वही पसर कर
सोचेंगे ये केसे पार कई है धरा
तुमने हर पग दिया सहारा

मैं भी हिम्मत कभी न हारा

चार कदम रहे गया किनारा

ये भी पार करेंगे यारा



विपिन चतुर्वेदी २६ जून २०११, ऋषिकेश

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