हास्य-व्यंग्य-
संदर्भःबाबा रामदेव
पिटाई सरकारी योग में तप कहलाती है
पंडित सुरेश नीरव
इश्क की दुनिया में महबूबा सरकार कहलाती है। जो अपने आशिक पर बड़े ही जुल्म ढाती है। मेरा तो मानना है कि सरकार कैसी भी हो,कहीं की भी हो सियासत की हो या मुहब्बत की हो जुल्म ही ढाती है। और यदाकदा,सुविधानुसार अपने चाहनेवाले को तबीयत से पिटवाती भी है। पिटनेवाले को कभी नाराज नहीं होना चाहिए,उसे तो खुश होना चाहिए कि कोई तो है जो उसे इतनी शिद्दत से चाहता है। वैसे भी कहा गया है कि सोना जितना तपता है उतना ही निखरता है। रामदेव बाबा दिल्ली गए ही थे तप करने। पुलिस की पिटाई सरकारी योग में तप ही कहलाती है। सरकार की यही कसौटी है सोने को परखने की। बाबा खुशनसीब हैं कि सरकार ने उन्हें सोना समझा। ओ मेरे सोना रे सोना खफा मत होना रे। आप तो सरकारी टकसाल से सोना होकर निकले हो। बिल्कुल हॉलमार्क सोना। क्या करें सरकार के सोना जांचने के अपने अलग ही ढंग हैं। और फिर कोई आप कालाधन भी नहीं। जो गुपचुप जांचा जाए। सार्वजनिकरूप से सरकार ने आपको परख लिया। आप तो कालाधन विदेश से वापस मंगवाने निकले हो। आपकी नीयत साफ है। लेकिन बाबा ये तो बताओ कि गोरे देशों की बैंकों में रखे जानेवाले धन को ही कालाधन क्यों कहा जाता है। और कालाधन गोरी-गोरी बैंकों में ही क्यों रखा जाता है। रहा सवाल पुलिस की पिटाई का तो पुलिस का डंडा चाहे लाला लाजपत राय हों चाहे बाबा रामदेव सब पर समानरुप से अपना पराक्रम दिखाता है। और पुलिस चाहे विदेशी हो या स्वदेशी अपना कर्तव्य एक ही निष्ठा से निभाता है। इसे आप सीरियसली मत लेना। ये सूरदास की लाठी नहीं है जो अंधेरे में,बुढ़ापे में सहारा दे। ये भरी जवानी और दोपहरी में आदमी को सहारे से ही चलने लायक बना देती है। पुलिस द्वारा की गई पिटाई को लेकर वैसे भी विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। सरकार की नज़र में पुलिस द्वारा की गई पिटाई एक सुकृत्य है वहीं विपक्ष और पिटनेवाले की नज़र ने पुलिस द्वारा की गई पिटाई एक जघन्य कुकृत्य है। ऐसे ही सरकारी महोत्सवों के जरिए पुलिस अधिकारी प्रमोशन पाता हैं। और दांव उल्टा पड़ जाए तो निष्कासित भी हो जाते हैं। वैसे भी जनता की सेवा के लिए हर समय हर जगह मुस्तैद पुलिस की एक खासियत और है। ये हादसे के घंटे-दो घंटे बाद ही मौका-ए-बारदात पर पहुंचती है मगर जब इसे खुद वारदात करना हो तो पूरी मुस्तैदी के साथ ये सही टाइम पर गलत काम सही ढंग से कर देती है। आपके मामले में भी यही हुआ। पुलिस कश्मीर से कन्याकुमारी तक इसी सदाचार को निभाती है।
आप ठहरे योगी। आपको स्त्री शक्ति का तजुर्बा कहां होगा। पर देखिए न आप स्त्री वस्त्र पहनकर ही साबुत निकल पाए हैं। यह है स्त्री की शक्ति। और फिर दिल्ली तो वैसे ही स्त्री शासित प्रदेश है। और जो दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं उनकी पार्टी भी स्त्री शासित पार्टी है। आपके लिए तो यही लोकगीत मुफीद बैठता है-दो-दो जोगनी के बीच में अकेलौ लांगुरिया। वैसे आपकी एक बात बिल्कुल ठीक है कि जब आदमी ईमानदारी से दस साल में ग्यारहसौ करोड़ कमा सकता है तो फिर उसे कालाधन कमाने की जरूरत क्या है। यह भ्रष्टाचार है और हम इसके लिए संघर्ष करते हैं तो सरकार को मिर्ची काहे को लगती है। सच सरकार बड़ी बेबफा है। इसे बदल ही देना चाहिए।
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ज़ियाबाद
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