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Saturday, July 2, 2011

भारतीय संस्कृति संस्थान के 70वें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की झलक


 रिपोर्ताज-
राजभाषा हिंदी केपटाउन से बुर्ज खलीफा तक
पंडित सुरेश नीरव
दिनांकः 14 जून-
इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्ड्डे से एमीरेट्स की ई515 फ्लाइट से रात्रि के 9.50 पर हम लोग दिल्ली से दुबई के लिए रवाना हुए। उपलक्ष्य था- भारतीय संस्कृति संस्थान के 70वें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में शरीक होने का। कार्यक्रम दक्षिण अफ्रीका के जोहनेसबर्ग,सनसिटी और केपटाउन में और लौटते समय दुबई में आयोजित होना था। दस दिनी इस प्रवास में अफ्रीका और दुबई की संस्कृति और वहां के पर्यटन स्थलों को देखने की उत्सुकता प्रतिनिधिमंडल के हर एक प्रतिभागियों के चेहरों पर साफ दिखाई दे रही थी। दुबई के स्थानीय समय के मुताबिक रात के 12.00 बजे हम लोग दुबई एअरपोर्ट पर उतरे। दुबई का समय भारत से डेढ़ घंटे पीछे चलता है। मेरी घड़ी में इस समय भारतीय समयानुसार डेढ़ बज रहे थे। 4 घंटे यहां रुककर हमें जोहनेसबर्ग की फ्लाइट लेनी थी। दुबई के समयानुसार 4.40 ( भारतीय समयः6.10) पर हमलोग एमीरेट्स की उड़ान-ईके-715 से जोहनेसबर्ग के लिए रवाना हुए। और फिर पूरे सात घंटे का सफर तय करने के बाद दक्षिण अफ्रीका के समय के अनुसार 11.15 पर जोहनेसबर्ग एअरपोर्ट पर पहुंच गए। दक्षिण अफ्रीका का समय भारत से साढ़े चार घंटे पीछे चलता है। मेरी घड़ी में इस समय भारतीय समय 2.45 हो रहा था। जोहनेसबर्ग में आज हमें न ठहर कर यहां से 290 कि.मी. दूर सनसिटी की होटल केवानस में ठहरना था। यह दूरी दिल्ली से 290 कि.मी यानी चंडीगढ़ या जयपुर के बराबर थी।. भारत में यह दूरी चार घंटे से कम समय में तय नहीं होती। मगर यहां की बेहतरीन सड़कों और कार की 120-150 कि.मी. की तेज़ स्पीड ने इसे सिर्फ दो घंटे में तय कर दिया। होटल केवानस में अपना सामान रखकर भारतीय भोजन का लुत्फ उठाने हम लोग होटल सनसिटी को रवाना हो गए। झील,झरनों और विशाल खजूरवृक्षों से सज्जित अनेक महाकाय डायनिंग कक्षों से लैस यह होटल जोहनेसबर्ग की बेहतरीन होटलों में एक है। यहीं हम लोगों ने भारतीय भोजन का भरपूर आनंद लिया। महालिस पर्वतश्रृंखला और हजबीयस नदी के किनारे चौड़ी-चौड़ी सड़कोवाले इस शहर की खूबसूरती ने हम सभी का मन मोह लिया।
15जून-2011 सनसिटी-
सुबह के नाश्ते के बाद भारतीय संस्कृति संस्थान के 23वें अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन का  प्रातः10.00 बजे संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष संसद सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी ने उदघाटन किया। अध्यक्षता संस्थान की अध्यक्ष डॉ.मधु बरूआ ने तथा संचालन प्रसिद्ध हिंदी कवि एवं संस्थान के महा सचिव पंडित सुरेश नीरव ने किया। उदघाटन सत्र में एक छोटे से कॉफीब्रेक के बाद भारत  की संघ सरकार की राजभाषानीति का प्रभावी कार्यान्वयन तथा आधुनिक मीडिया में हिंदी भाषा के स्वरूप की विकासात्मक संभावनाएं विषय पर आलेख पढ़े गये। रात्रि में सफारी के घने जंगलों में घूमते हुए सभी साथियों ने वन्यजीवन का भरपूर आनंद लिया। सफारी में घूमते हुए हम लोगों ने रीनो,एंपाला,नील गाय, बारहसिंघा,हिरण और नेवले खूब देखे। नेवले यहां भारत के मुकाबले काफी बड़े होते हैं। इस दिन खग्रास चंद्र ग्रहण भी था। साथियों ने इस अदभुत नजारे का भी भरपूर लुत्फ उठाया।
16 जून2011-
सुबह 8.00 बजे हम लोग सनसिटी से (भारतीय समय 12.20) जोहनेसबर्ग के लॉयन पार्क के लिए रवाना हुए। और पूरे दो घंटे के सड़क सफर के बाद वहां पहुंच गए। लॉयन पार्क सचमुच में ही लॉयन पार्क था। जगह-जगह समूहों में बैठे शेर निश्चिंत भाव से सैलानियों को निहार रहे थे। आदमी से इतनी गहरी जान पहचान कि कार और बस के आगे खड़े होकर लोगों के साथ एक सतर्क फोटो सैशन देने में कोई परेशानी नहीं। चीता,हिरण,रीनो भी खूब। और सब के सब स्वतंत्र। कहीं कोई बंधन नहीं। शेर के बच्चों से खेलने के लिए लोग टिकट लेकर लाइन में लगे रहते हैं। लॉयन पार्क के भ्रमण के बाद हम लोग होटल एंप्रेस में आए। भोजन किया. और फिर शुरू हुआ दूसरा सत्र। इस सत्र में दक्षिण अफ्रीका-वर्णभेद और गांधी तथा दक्षिण अफ्रीका में हिंदी का अतीत और भविष्य की संभावनाएं विषय पर आलेख पढ़े गए।
17 जून 2011-
जोहनेसबर्ग से सुबह 6.00 बजे नाश्ता लेने के बाद हम लोग एअरपोर्ट की ओर रवाना हुए। और यहां से 9.00 बजे हम लोगों ने केपटाउन के लिए उड़ान भरी। दो घंटे के हवाई सफर के बाद हमलोग केपटाउन पहुंचे। यहां हमलोगों को होटल केपटोनियन में ठहराया गया। सफर की थकान का बाद तरोताजा होकर हमलोगों ने लंच लिया। और ठीक 3.00 बजे अकादमिक सत्र प्रारंभ हुआ। इस सत्र में दक्षिण अफ्रीका के समाज में भारतीयों की भागीदारी और भारतीय संस्कृति का प्रभाव एक विवेचन विषय पर आलेख पढ़ा गया। कॉफी ब्रेक के बाद दक्षिण अफ्रीका मार्टिन लूथर किंग से नेल्सन मंडेला तक शीर्षक से आलेख पढ़ा गया। आलेख-वाचन के बाद खुले सत्र में प्रतिभागियों ने भारतीय कार्यालय में राजभाषा के कार्यान्वयन को लेकर होनेवाली कठिनाइयों पर खुलकर चर्चा की।
18 जून2011-
पूरे दिन हम लोगों ने केपटाउन की खूबसूरत वादियों का लुत्फ उठाया। आकाश तक लहरें उछालता सागर दूर तक फैली हरियाली। यहां स्टीमर से समुद्र की सैर करना एक रोमांचक तजुर्बा है। समुद्र के बीच उभरे पहाड़ों पर सील मछलियां ऐसे आकर बैठ जाती हैं-जैसे कि पहाड़ पर बकरियां बैठी हों। समुद्र के किनारे पेंग्वुइन की बस्तियां हैं। ये पेंग्वुइने बहुत दूर तक पर्यटकों के साथ तक चलती जाती हैं। सील और पेंग्वुइनों को इतने पास से देखने का यह हम लोगों का पहला ही तजुर्बा था। हीरा,सोना और प्लेटिनम से लवरेज दक्षिण अफ्रीका की वैसे भी हर छटा निराली है।
19 जून 2011-
 भरपूर पर्यटन के बाद आज के दिन फिर अकादमिक सत्र हुआ। इस सत्र में राजभाषा हिंदी दिवस पर्व का औचित्यानौचित्य,सरकारी कार्यालयों में राजभाषानीति में मूलभावना के अनुरूप हिंदी का प्रयोग और संघ सरकार की राजभाषानीति का बेहतर कार्यान्वयन विषय पर आलेख पढ़े गए। केपटाउन में टेबलमांउटेन और बोटेनिकल गार्डन भी देखने लायक जगह हैं। हमारे कोलकाता का बोटेनिकल गार्डन तो इसके आगे निरा बच्चा है।
20 जून2011-
 20 जून को मेरी सालगिरह होती है। अपने देश से इतना दूर होने के बावजूद तमाम लोगों ने मोबाइल पर और लगभग 200 लोगों ने फेसबुक पर मुझे बधाइयां दीं। केपटाउन में इस समय हम लोग ऑस्ट्रिचफार्म में टहल रहे थे। शुतुरमुर्गों का पूरा जंगल हैं यहां। 1-1 क्विंटल के शुतुरमुर्ग। और 1-1 किलो के इनके अंडे। खाने में इन्हें कंकड़ दिए जाते हैं। ये सारी जानकारियां यहीं आकर मिलीं। बहुत ऊंचाई पर यहां वास्कोडिगामा का लाइट हाउस भी बना है। जहां समुद्र में आते जहाजों को कभी दिशा-निर्देश मिलते थे। आज इस जगह पर ट्राम से जाया जाता है। मगर इसके बाद भी काफी ऊंचाई तक पैदल चढ़ना पड़ता है।
केपटाउन से 3.00 बजे हम लोगों ने एअरपोर्ट की ओर प्रस्थान किया। और 6.10 की एमीरेट्स की ईके-771 उड़ान से दुबई के लिए रवाना हो गए। पूरे 9 घंटे की उड़ान के बाद हम लोग 21 जून की सुबह 5.25 पर दुबई एअरपोर्ट उतरे। और सीधे होटल दुबई ग्रांड पहुंचे। ये होटल हवाईअड्डे से 10 कि.मी. दूर है। लंच के बाद हम लोग दुनिया के सबसे बड़े डेजर्ट सफारी को देखने रवाना हुए। एक अजीब रोमांचक तजुर्बा मिला यहां। रेत के पहाड़ों और खाइयों में लैंडरोवर कारों में बैठाकर ड्रायवर जो उलटबांसी के स्टंट दिखाता है उसकी याद अभी भी कलेजे में हौल मचा देती है। इस कलाबाजी को बेश ड्यूनिंग कहा जाता है। हमारे ड्रायवर साहब पाकिस्तान के थे। और खान अब्दुलगफ्फार खां के परिवार के। पठान और ऊपर से शायर। एलएलबी अलग से पास।  इनकी शायरी और स्टंट के झटकों ने तबीयत हरी कर दी। कई किलोमीटर के सफर के बाद दुबई टूरिज्म की ओर से बने एक ओपेनरूफ होटल में शेखों की अऱब शैली में भोजन करने और इसके साथ ऊंट की सवारी और तंबूरा डांस का लुत्फ उठाने का इंतजाम किया गया था।
22जून2011-
 दुबई के लोग हम भारतीयों को दुबई का मतलब बताते हैं-दोभाई। दुबई-भारत दो भाई। भारतीयता का पूरा रंग है,दुबई में। 24 घंटे भारत के चैनल। फिल्मी म्यूजिक। और  यहां सबसे ज्यादा भारतीय डॉक्टर। आधुनिकता की अदभुत मिसाल है- दुबई। यहां 52 फाइव स्टार होटल हैं। और 72 विशालकाय मॉल्स हैं। गंगा-जमना के देश भारत में आज पानी खरीदना पड़ता है मगर इस रेगिस्तानी देश में पानी मुफ्त मिलता है। समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने के छह संयंत्र  दुबई में लगाए गए हैं।  यहां एक नॉलेज विलेज हैं। जिसमें 7 नामचीन विश्वविद्यालय कार्यरत हैं। भारत की मनीपाल यूनिवर्सिटी भी इनमें एक है। एक मीडिया सिटी भी है- दुबई में। होटलों के भी अपने अलग ही अंदाज़ हैं। मरीना जुमेरा अरबी शिल्प का बना होटल है। होटल रेफल्स इजिप्त के पिरामिड की शक्ल में बनी है। होटल एटलेंटिस के 1539 कमरे एक्वेरियम की डिजायन में बने हैं। एक होटल बर्थ डे केक की शक्ल में है। होटल बुर्ज 120 मंजिल की होटल है। पेरामांउट होटल तो शाहरुख खान-जैसे फिल्मी सितारों और क्रिकेट प्लेयरों की मनपसंद होटल है। समुद्र के भीतर बनी कई कि.मी..लंबी सुरंग भी चकित करती है। होटल वाटरफॉल और वाइल्डवादी भी अपने दिलकश झरनों से सैलानियों का मन मोह लेती है। गोल्डसूक मॉल और मॉल ऑफ एमीरेट्स यहां के मशहूर मॉल हैं। बुर्ज खलीफा तो इस वक्त दुनिया का आठवां आश्चर्य ही बनी हुई है। यह बुर्ज डेढ़ किलोमीटर ऊंची है और इसमें 160 मंजिलें हैं। दुबई में दो जगह मुख्य हैं। पहली है- गसेज़। इसे मिनी इंडिया भी कहा जाता है। दूसरी है- डेरा। यह दुबई में मिनी पाकिस्तान है। दिल्ली की तरह यहां ग्रीनलाइन मेट्रो चलती है। यहां कई भारतीय स्कूल भी हैं। जिनमें डीपीएस,इंडियन स्कूल और भारतीयविद्या भवन उल्लेखनीय हैं। सुमति वासुदेवन भारतीय उच्चायुक्त की पत्नी हैं और स्वयं संस्कृत की विद्वान हैं। अभिमन्यु गिरि भारतीय समाज में खासा असर रखते हैं। वे गोरखपुर के रहनेवाले हैं। उनकी पत्नी प्रीति गिरि ङी एक सक्रिय समाज सेवी हैं। दुबई में आयोजित सत्र में भारतीयों ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। ये लोग अपने कार्यस्थल से छुट्टी लेकर इस सम्मेलन में शरीक होने आए।  इस सत्र में संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय समाज और फिल्मी मुंबई की बहन है दुबई विषय पर आलेख पढ़े गए। इसके बाद एक सरस कवि सम्मेलन भी हुआ। जिसमें अभिमन्यु गिरि, रघुवंशी,सतपाल,सुरेश नीरव के अलावा सत्यव्रत चतुर्वेदी ने अपनी रोचक कविताएं सुनाईं। भारतीयों द्वारा यहा एकल विद्यालय चलाया जाता है। इस विद्यालय की गतिविधियों से प्रभावित होकर संस्थान की अद्ययक्ष डॉ.मधु बरूआ ने 25 हजार का  चैक संस्था को भेंट कर दुबई  और भारत के संबंधों को और प्रगाढ़ कर दिया। इसी का नतीजा है कि दुबई में रह रहे भारतीय भारतीय संस्कृति संस्थान के हीरक जयंती सम्मेलन को दुबई में आयोजित करने का  लगातार आग्रह कर रहे हैं। दुबई  की एक खास बात और है। यहां के शेख मुहम्मद राशिद खुद अरबी के एक बेहतरीन शायर हैं। और उन्होंने अपनी दुबई  को एक खूबसूरत ग़ज़ल की तरह संवारा है। भारतीय संस्कृति संस्थान के आयोजन को देखकर ऐसा लगा-जैसे गीत और ग़ज़ल गले मिल रहे हों। राजस्थान की पगड़ी और अचकन शेखों की जूथर(सिर पर रखा कपड़ा और रस्सी) और कंदूरे(चोगा) में ढल रही हो। यही था भारतीय संस्कृति संस्थान के आयोजन का मुख्य उद्देश्य.। हर प्रतिभागी के जिस्म से लिपटी है दक्षिण अप्रीका और दुबई की सुगंध। और राजभाषा का सम्मान।
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ाज़ियाबाद





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