यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Saturday, July 9, 2011
"रिश्ते!
"रिश्ते! गीली लकड़ी की तरह सुलगते रहते हैं सारी उम्र।
कड़वा कसैला धुँआ उगलते रहते हैं।
पर कभी भी जलकर भस्म नही होते ख़त्म नही होते।
सताते हैं जिंदगी भर किसी प्रेत की तरह! विवेक त्रिपाठी
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