डा०मधु चतुर्वेदी की षष्टि पूर्ति के अवसर भावुकता के प्रणाम निवेदित हैं------------
जब प्रतिभा का कुंदन संघर्ष की
भठ्ठी में तपता है
मेधा का रोली चंदन
माधुर्य से लिपट
विद्वता के गजानन से एकमेव हो जाता है
आदि से अंत तक जो सिर्फ कविता है
छू नही सका है जिन्हे
संकुचित सोच का सांसारिक व्यवहार-व्यापार
श्रद्धा जिन्हे देखकर लेने लगती है आकार
ममता के सागर को समेटे
अनवरत,बिना थके,बिना झुके
प्रज्जवलित हैं
ज्यों यग्य की वेदी हो
उनका नाम क्यों ना डा० मधु चतुर्वेदी हो
जिस किसी को संशय हो
या रंचमात्र भी हो संदेह
बैठ जाये इस अपाला के चरणों में
मेरा दावा है कि उनकी उपस्थिति मात्र से वह हो जायेगा विदेह
आज के इस झूठे दौर में आपका साहित्य और मनुष्यता से प्रेम अनन्य है
डा०मधु चतुर्वेदी ही क्यों?
जिस किसी को आपका सानिध्य मिला वह धन्य है
धन्यता का यह अजस्र स्रोत यों ही बहता रहे
युग स्वयं आपकी गौरव-गाथा गाता कहता रहे
मेरी तो प्रभु से यही प्रार्थना है, कामना है
डा० मधु चतुर्वेदी जाग्रत कविता हैं
युग को जिसे अभी वांचना है
बेहतर होगा कि हमारे युग की इस सरस्वती को हम पहचानें
जानें और मानें
यह हमारा स्वयं पर ही नही
इस कृतघ्न समय पर भी एहसान होगा
श्रेय ले सकते हो तो ले लो,वरना
समय आने डा० मधु चतुर्वेदी
सचमुच
मूल्यांकन होगा ,मान होगा
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अरविंद पथिक
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