वो पल कहाँ गए ..........
जो मस्त थे, अबोध थे, वो पल कहाँ गए
खुशहाल थे, संतुष्ट थे, वो कल कहाँ गए
रिश्ता मधुर भुला दिया चन्दा को जानकर
बचपन के दिन हथेली से फिसल कहाँ गए
गर्मी के तेज ताप से तपती वसुंधरा
हैरान है सावन, मेरे बादल कहाँ गए
आकर शहर में गाँव की फैली हथेलियाँ
हलधर तेरे काँधे, तेरे वो हल कहाँ गए
कंदील को अहसास ज़रा सा भी ना हुआ
कुछ लम्हे जो थे मोम के, पिंघल कहाँ गए
निकले थे हाथ थामकर मंजिल तलाशने
हमराह रास्ते तेरे, बदल कहाँ गए
घनश्याम वशिष्ठ
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