रंगों-जमाल की न कोई बात कीजिये
दों चार रोज़ सिर्फ मुलाक़ात कीजिये।
जब भी मिलैं तो सिर्फ इशारों में बात हो
बेकार के न हम से सवालात कीजिये।
हम बावकार लोग हैं, इसका रहे ख़याल
जब भी मिलैं, अदब से मुलाक़ात कीजिये।
घुट घुट के रोज़ मरना कोई ज़िन्दगी नहीं
हो ज़र्फ़ ग़र ज़रासा, मेरा साथ दीजिये।
अब उम्र ढल रही है, हुए बाल भी सफ़ेद
कुछ तो हुज़ूर हम पे इनायात कीजिये।
नेकी-बदी के सोच में ना वक़्त खोइए
बस दिल से दिल मिलैं वो करामात कीजिये।
हम ने तो अपनी बात ग़ज़ल में सुना ही दी
अब आप भी इज़हारे-ख़यालात कीजिये।
मृगेन्द्र मक़बूल
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