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Friday, August 26, 2011

जयलोकमंगल का गुलदस्ता


डॉक्टर नागेश पांडेय संजय की कविता बहुत ही सामयिक और तेजाबी है-
लोकपाल क्यों लग रहा है शासन को जाल ?
चर्चा को लेकर बना ,असमंजस का हाल । 

असमंजस का हाल , कि कैसे हो निबटारा

भ्रष्टाचार मिटा तो होगा कौन हमारा

जीना होगा कठिन , बहुत मुश्किल आएगी ,
पास हुआ बिल अगर,पोल सब खुल जाएगी.

-डा.नागेश पांडेय 'संजय
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भगवानसिंह हंस की रचना अधर क्यों बिचर जाते हैं,बहुत भावप्रवण रचना है।
बात  जुवां  से   होती है 
अधर क्यों बिचर जाते हैं
बात जो कह नहीं पाते
नेत्र    वो  कह   जाते हैं
बात वो  फूल  की करते 
कली   को  भूल जाते हैं 
टूटते  हैं   पर    उसके 
टूटकर बिखर जाते हैं 
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घनश्याम वशिष्ठ का आहवान बहुत सटीक है।
मैं देश का अपराधी हूँ कि मैंने ऐसा सांसद चुना 
मैं स्वीकार करता हूँ ,आप भी स्वीकार करें .
 भूल सुधार करें.
वर्तमान सांसदों को हटाओ ,भ्रष्टाचार मिटाओ ,
देश बचाओ ,आओ अन्ना के साथ आओ

घनश्याम वशिष्ठ
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  विश्व मोहन तिवारी, एयर वाइस मार्शल (से. नि.)

 जानवर कैसे मानव बन जाते हैं, इस पर तिवारीजी आपने अच्छा और करारा व्यंग्य किया है।
लघु कथा
विचित्र गोशाला
. . . . . . विश्व मोहन तिवारी, एयर वाइस मार्शल (से. नि.)

एक ऋषि थे; नित्य स्नान, ध्यान, श्रवण, मनन, निदिध्यासन तथा शिक्षण प्रशिक्षण उनका जीवन था। उनका आश्रम था जो विशाल तो नहीं था, यद्यपि नालंदा या तक्षशिला से तो विशालतर ही था, सच कहें तो विराट था - जिसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षीण में हिन्द महासागर था।
एक से वे चार हुए। वह आश्रम अपनी गोशाला के लिये प्रसिद्ध था, किन्तु उसमें सभी जानवरों का स्वागत होता था। किन्तु उसकी सबसे अधिक आश्चर्य वाली बात थी कि वे सभी जानवर जब वहां से निकलते थे तब वे मानव बनकर निकलते थॆ।
सभी को जयलोकमंगल
पंडित सुरेश नीरव




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