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Thursday, August 25, 2011

टूटकर बिखर जाते हैं

बात  जुवां  से   होती है 
अधर क्यों बिचर जाते हैं
बात जो कह नहीं पाते
नेत्र    वो  कह   जाते हैं
बात वो  फूल  की करते 
कली   को  भूल जाते हैं 
टूटते  हैं   पर    उसके 
टूटकर बिखर जाते हैं 


भगवान सिंह  हंस   

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