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Friday, August 19, 2011

वो निगाहों से निगाहें जो मिला लेते हैं

एक ग़ज़ल के चन्द शेर पेश हैं।
वो निगाहों से निगाहें जो मिला लेते हैं
लोग इस बात का अफ़साना बना देते हैं।

होश खो देता हूँ महफिल में देख कर मैं उन्हें
जाने क्या चीज़ वो आँखों से पिला देते हैं।

वो आग को आग के शोलों से बुझा देते हैं
हम तेरे ग़म में हर इक ग़म को भुला देते हैं।

अपना अफ़साना सुनाऊं भी तो कैसे
लोग हर बात का अफ़साना बना देते हैं।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

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