हास्य-व्यंग्य-
मजबूरी
का नाम ईमानदारी
पंडित सुरेश नीरव
पता नहीं इस देश से
भ्रष्टाचार कब जाएगा। बाबा रामदेव से लेकर अन्ना हजारे ही नहीं अब तो हमारे मुसद्दी लाल तक इस समस्या से परेशान
हैं। और सरकार है कि जो भी इस मुद्दे के खिलाफ आवाज उठाता है वह उसे ही भ्रष्टाचारी
बताने में लग जाती है। बाबा-तो-बाबा, दूध के धुले बालकिशन तक फर्जी हो गए इस सरकार
की नज़र में। बालकिशन की डिग्री नकली। बालकिशन की नागरिकता नकली। चोर कहीं का। चला
था देश का कालाधन वापस मंगवाने। सरकार ने बाबा की लंगोटी और बालकिशन की पोल दोनों
ही बड़ी विनम्रता के साथ खोल दीं। मुसद्दीलाल परेशान हैं कि बालकिशन के मामले में
सरकार ने ये क्यों नहीं बताया कि उसे ये नकली डिग्री मुहैया किसने कराई.और क्या वो
एजेंसी आज भी यह कल्याणकारी कुटीर उद्योग चला रही है। या ये एजेंसी केवल बालकिशन
के कल्याण के लिए ही भारत की देवभूमि में प्रकट हुई थी। सरकार को वैसे सब मालुम
है। मगर देशहित में इसे उसने गोपनीय रखा है। स्विसबैंक के खातों की तरह। खुलासा
करने से जांच प्रभावित हो सकती है। मुसद्दीलाल को लगता है कि लगातार भ्रष्टाचार के
आरोप लगने से सरकार का चित्त कुछ मलिन हो गया है। इसलिए किसी भी शरीफ आदमी के वह
पीछे पड़ जाती है। अब देखिए न सरकार के एक ढिंढोरचीबाबू ने तो अन्ना को ही भगोड़ा
सिपाही कह डाला था। जबकि यही सरकार अन्ना की शराफतत की इतनी कायल रही थी कि उन्हें
पद्मश्री देकर मन नहीं भरा तो फिर पद्मभूषण भी दे डाली थी। अन्ना तब अच्छे थे। मगर
एक बात समझ में नहीं आई कि क्या सरकार किसी व्यक्ति को इतने महत्वपूर्ण अलंकरण बिना
कोई जांच-पड़ताल किये ही अंधा बांटे रेवड़ी के तर्ज पर बांटती रहती है। और
अगर ऐसा नहीं है तो फिर उनके ढिंढोरचीबाबू ने उन पर मुंहजोरी और सीनाजोरी से
ओतप्रोत होकर इतना बड़ा आरोप किस विना पर लगा डाला था। क्या सरकार अन्ना को भी बालकिशन
बनाने पर आमादा थी। जनता का दवाब इतना नहीं होता तो सरकार ने अपना होमवर्क तो शुरू
कर ही दिया था। इसीलिए ढिंठोरची बाबू ने बयान दे दिया। जैसे टूथपेस्ट से निकला
मंजन वापस ट्यूब में नहीं जा सकता वैसे ही दिया हुआ बयान भी वापस मुंह में नहीं जा
सकता। ऐसे नाजुक समय में ही बुजुर्गों का खोजा हुआ मुहावरा- थूककर चाटना
मौखिक-अतिसार के रोगियों को बड़ा फायदा पहुंचाता है। ढिंढोरची बाबू का बयान भी
बालकिशन की डिग्री-जैसा फर्जी निकला। लगता है अब तो फर्ज ही फर्जी हो गया है। सो
भैया जो फर्ज निभाए वही फर्जी। मुसद्दीलाल परेशान हैं कि क्या करें। वो रिटायरमेंट
के बाद देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। रिटायरमेंट के बाद तुच्छ दिमाग में ऐसे ही
उच्चविचार किलबिलाते हैं। नौकरी में रहते ऐसे फालतू विचार कभी नहीं आए। खाली दिमाग
शैतान का घर। अन्ना भी तो आखिर रिटायरमेंट के बाद ही तो निकले हैं भ्रष्टाचार
हटानें। भ्रष्टाचार हटाया ही जा सकता है। भ्रष्टाचार मिटाया नहीं जा सकता।
उधरवालों से हटकर थोड़ा इधरवालों को भी तो चांस मिले। रिटायरमेंट के बाद
मुसद्दीलाल के भ्रष्टाचारी होने का कोई चांस ही नहीं रह गया है। इसलिए दृढतापूर्वक
निकल पड़े हैं मुसद्दीलाल भी भ्रष्टाचार हटाने। भगवान के दिए दो लड़के हैं। दोनों
ही होनहार। एक को पुलिस में और दूसरे को इनकमटैक्स के महकमें में ले-देकर
मुसद्दीलाल ने फिट करा दिया है। दोनों ही पूरी ईमानदारी से भ्रष्टाचार हटाने में जुटे
हुए हैं। भगवान की कृपा से दोनों के पास ही दो-दो कोठियां, चार-चार कारें, और
तीन-तीन फार्महाउस हैं। दो साल में इतनी तरक्की। सब मेहनत और भगवान की कृपा का
करिश्मा है। हर किसी को थोड़े ही भगवान चमत्कार दिखाते हैं। अब और क्या चाहिए
मुसद्दीलाल को। भ्रष्टाचार के तो नाम से ही मितली आ जाती है-मुसद्दीलाल को। एक ही
हसरत रह गई है कि प्रभु किसी तरह अन्ना टीम में शामिल करवा दें तो आखिरी समय में
भरपेट देशसेवा कर डालें। शास्त्र भी कहते हैं कि देशसेवा से ही मोक्ष मिलता है।
आखिर भ्रष्ट नेता कब तक करते रहेंगे देश सेवा। आखिर देशसेवा हमारा भी तो जन्मसिद्ध
अधिकार है। हमें भी तो मौका मिलना चाहिए। इस बात की भरपूर आशंका है कि जल्दी ही
मुसद्दीलाल आदमी के बजाय चैनलों की टीआरपी और अखबारों के सरकुलेशन को बढ़ाने का शर्तिया
टोटका बन जाएं। जय हो भारत माता की।
आई-204,गोविंदपुरम,गाजियाबाद-201001
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