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Saturday, September 3, 2011

नीरव और गीत

आदरणीय श्री नीरवजी आपका  नए गीत -वहम से थरथराते तुम- बहुत पसंद आया. बधाई. गीत के बोल कुछ ऐसे लम्हों से गुजरता है, कहीं महकती हवा, कहीं हरी-हरी पत्तियां , कहीं ओस के कण, कहीं बर्फ की  ठिठुरती परतों में, हँसती और हँसाती, नींद की अलसाई में चादर ओढ़कर ख्वाब में अनवरतरूप से प्रतिदिन तुम आते हो और उसी  रात के हमसफर में पूरे तान पर लोरियां- सी सुनाते हो और वहीँ कहीं ओष्ठों पर आहट के रूप में वहम-से थरथराते तुम मेरी आँखों में दिखाई देते हो. तो प्रेमिका कहती है कि तुम इस तरह प्यार का इज़हार क्यों करते हो, साक्षात दीदार कीजिये और मेरी व्याकुल अलसाई आहों की करबटों में स्नेह की थिरण उत्पन्न कीजिये. बेहतरीन गीत. गीत की निम्न पंक्तियाँ मन को बहुत भायीं-  

 हुस्न की आंच में दमके शोख चेहरे ये लम्हों के
सुबह की रूह में जागे हज़ारों गीत झरनों के
बादलों के दरीचों से धूप-सा खिलखिलाते तुम

ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम

कभी चुप्पी के आंचल में छिपाकर फूल यादों के
प्यार के हाथ में लेकर कभी कचनार वादों के
कभी ओठों पर आहट के वहम-सा थरथराते तुम


ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम

भगवान सिंह हंस 

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