Search This Blog

Monday, September 19, 2011

रोज़ नया लिखते हो

ज़रा तुम दिख पड़ो 
दिल में अजब सागर उफनता है
भाई घनश्याम वसिष्ठजी आपका कता बहुत सुंदर है।
आप भी रोज नया ही नया लिखते हैं।
और खूब लिखते हैं। बधाई.

No comments: