यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Monday, September 19, 2011
रोज़ नया लिखते हो
ज़रा तुम दिख पड़ो
दिल में अजब सागर उफनता है
भाई घनश्याम वसिष्ठजी आपका कता बहुत सुंदर है।
आप भी रोज नया ही नया लिखते हैं।
और खूब लिखते हैं। बधाई.
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