कभी
नहीं मिलवाऊंगा अमिताभजी को
सुरेश नीरव से
-प्रकाश
प्रलय
छोटे शहरों के लोगों
के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है कौन बड़ेगा करोड़पति जैसे प्रोग्राम
में शरीक होने का। इस नाचीज़ हास्य कवि प्रकाश प्रलय को इत्तफाक से यह मौका मिला।
पूरे उत्साह के साथ अमिताभ बच्चनजी के सामने हॉट सीट पर ऊंट-सी गर्दन उठाकर मैं जा
बैठा। अपनी बुद्धि के अनुसार मैंने प्रश्नों के जवाब भी दिए। अंधे के हाथ बटेर लग
चुकी थी मतलब कि 25 लाख रुपए तक मैं जीत चुका था। मगर फिर एक सवाल पर मेरी बुद्धि
की सुई अटक गई। अमिताभजी ने पूछा कि आप किसी से मदद लेना चाहेंगे। तो मैंने कहा-
जी हां..। मैं पंडित सुरेश नीरव से मदद लेना चाहूंगा। उन्होंने पूछा कि आप श्योर
हैं कि आपको वो सही समाधान दे पाएंगे। तब मैंने पूरे आत्म विश्वास के साथ कहा कि-
सिर्फ यही प्रश्न नहीं कोई-सा भी प्रश्न या समस्या हो नीरवजी के पास हर प्रश्न-समस्या
का समाधान हमेशा तैयार रहता है। मैं उन्हें बहुत ही विद्वान व्यक्ति मानता हूं। ये
सुनकर अमिताभजी ने कहा कि ऐसी श्ख्सियत से तो हम भी जरूर मिलना चाहेंगे। मैंने कहा- जरूर,मिलिए सर।
अमिताभजी ने पूछा कहां रहते हैं-आपके ये महाशय नीरव।
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हमने कहा-दिल्ली के पास बहन
कुमारी मायावती की कृपा से अब सिर्फ दो तहसीलवाला बचा-खुचा एक जिला है-गाजियाबाद। वहीं
रहते हैं पंडित सुरेश नीरव। वो बोले ठीक है दिल्ली तो मुझे जाना भी है। भैया अमरसिंहजी
अस्पताल में भर्ती हैं। उनसे भी मिल लेंगे। मैंने हंसते हुए कहा ठीक है सर... मगर
नीरवजी अमरसिंहजी से कतई भिन्न नस्ल के जीव हैं। यह अभी ही आपको बता देता हूं।
वैसे मैंने जो पच्चीस लाख रुपए जीते हैं उसमें से दो टिकट हवाई जहाज के अपनी तरफ
से मैं अभी बुक करवाए लेता हूं। ताकि आपको कोई परेशानी न हो। अपुनकी जेब में जब भी
पैसा होता है तो अपुन राजा की माफिक ऐसे ही पैसे खर्च करते हैं। मैंने कंधे उचकाते
हुए कहा और प्रोग्राम के तुरंत बाद सुबह की फ्लाइट से हम और अमिताभजी दिल्ली की
फ्लाइट पकड़ने को हवाई अड़डे की ओर बढ़ लिए।
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कुछ समय बाद दिल्ली आने को है विमान
में यह सूचना सुनते ही खुशी के मारे दिल मेंढक की तरह खुदुर-पुदुर करने लगा। प्लेन
लैंड हो चुका था। मैंने फुर्ती से अपना सीट बेल्ट खोला और अमिताभजी से बोला-चलिए
सर..और तेज़ी से हमलोग प्लेन की सीढ़िया उतनी ही तेज़ी से उतरने लगे जितनी तेज़ी
से भैया चिदंबरम लोकप्रियता की सीढ़िया उतर रहे हैं। तभी अचनाक पता नहीं क्या हुआ
मेरा पैर कहीं किसी चीज़ में उलझ गया और मैं गुलटियां खाता हुआ सीढ़ियों से नीचे आ
गिरा। बड़ी ज़ोर की आवाज हुई। मैं जमीन पर गिरा पड़ा हांफ रहा था। और सामने खड़ी
पत्नी चिल्ला रही थी कि इतने बड़े हो गए हो मगर अब भी बच्चों की तरह सोते हुए पलंग
से नीचे गिर जाते हो। मैं बड़े सदमें में था। शरारती पच्चीस लाख रुपए मुझे पटककर
सीधे-साधे अमिताभजी को लेकर फरार हो चुके थे। गाजियाबाद में लुटता तो कोई गम नहीं
होता। वहां तो हर शरीफ आदमी जाता ही लुटने के लिए ही है। मगर अपुन तो अपने ही घर
में लुटे-पिटे पड़े थे। पत्नी को क्या बताता। वो तो एक अठन्नी खो जाने पर
ज्वालामुखी हो जाती है। पच्चीस लाख के नुकसान की सुनकर तो पीट-पीटकर हमेशा के लिए
ही मुझे सुला देती। इस हादसे के बाद मैंने दो कसम खा ली हैं। पहली ये कि करोड़पति खेलने जब भी मुबंई जाऊंगा तो
वापस सपने में भी प्लेन से नहीं आऊंगा। हर बार पच्चीस लाख की चोट नहीं सह सकता हूं
मैं। और दूसरी कसम ये कि अब दोबारा अमिताभजी को कभी नीरवजी से नहीं मिलवाऊंगा।
आजकल कौन किसको किसी से मिलवाता है। मैंने तो फिर भी एक बार दोनों को मिलवा दिया।
अब मिलवाऊ तो तौबा। आपको मिलना हो तो निम्न पते पर जाकर मिल लें,मोबाइल करलें मगर
मेरे भरोसे कतई नहीं रहें। पता-
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ज़ियाबाद
मोबाइल-09810243966
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