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Sunday, September 11, 2011

दगा राम के साथ किया अब मज़ा राम चखाएंगे

दगा राम के साथ किया है अब राम ही तुम्हें बचाएगा
 अरविंद पथिकजी,
आपकी कविता पढ़ी। अच्छी है। मेरे हिसाब से दगा राम के साथ किया अब मज़ा राम चखाएंगे कविता का शीर्षक होता तो ज्यादा मुफीद होता। कुलमिलाकर कविता झकझोरनेवाली है। बधाई...
सुरेश नीरव

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