घनश्याम वशिष्ठजी
आज आपकी कविता ने बहुत आनंद दिया। खासकर इन पंक्तियों ने-
आज आपकी कविता ने बहुत आनंद दिया। खासकर इन पंक्तियों ने-
तने हुए तरु के तन पर थे
हरित पात उन्मादित से
गिरे धरा पर इधर उधर हो
पतझड़ में विस्थापित से
दिशा हीन अस्तित्व हीन
पीछे परिचय रह जाते हैं
चिर शिशिर शाप भोगे रजनी
श्रृंगार टूट गिरते तारक
चपला मचली सौभाग्य चिन्ह
कुमकुम की धधक उठी पावक
पलक झपकते प्रतिबिम्ब क्यूँ
पूनम में धुंधलाते है
बिलकुल मेथिलीशरण गुप्तजी की पंचवटी-जैसा प्रकृति चित्रण। बधाई-ही-बधाी
पंडित सुरेश नीरव
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