राजमणि |
राजमणिजी के दोहे-
बहुत दिन बाद ही सही
मगर धमाकेदार एंट्रेंस के लिए राजमणिजी दिली इस्तकबाल के ह़क़दार हैं। दोहे कहने
का एक अलग शऊर और सलीका होता है। जिसमें पाणिमी की सूत्रबद्धता और कबीर की
श्रषिदृष्टि होती है दोहे उसीको सिद्ध होते हैं। राजमणिजी ने लगता है जोहों को
सिद्ध कर लिया है। इन दोहों के क्या कहने-
दर –दर खाई ठोकरें, सीखी इतनी बात ।
दिल की दिल में राखिए, खुले नाही जज़्बात।।
गला काट प्रतियोगिता, चूहों की है दौड़ ।
जीत के भी चूहे रहे, फिर भी सब मेँ होड़।।
ऊंचा मैं तुझ से बहुत,तेरी क्या औकात।
अदब सियासत धरम तक,पग पग बिछी बिसात।।
दिल की दिल में राखिए, खुले नाही जज़्बात।।
गला काट प्रतियोगिता, चूहों की है दौड़ ।
जीत के भी चूहे रहे, फिर भी सब मेँ होड़।।
ऊंचा मैं तुझ से बहुत,तेरी क्या औकात।
अदब सियासत धरम तक,पग पग बिछी बिसात।।
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अरविंद पथिक |
श्री अरविंद पथिक
आपने जो दो मुक्तक पेश किए हैं। ये मेरे लिए भी नए हैं।
अपनी भूमिगत मुहब्बत का सार्वजनिक खुलासा जो आपने मुक्तकों के जरिए किया है,
उसकी हौसलाअफजाही तो होनी ही चाहिए। मैं भी कर रहा हूं।
किसी बिगडैल नाजनीन की चाहत नहीं हैं ,हम
ज़िंदगी को आपकी इनायत नहीं हैं, हम
खारिज़ करें या माने कुछ फर्क नहीं है--
इंकलाब हैं, ज़िंदा हैं, रिवायत नहीं हैं हम
ज़िंदगी को आपकी इनायत नहीं हैं, हम
खारिज़ करें या माने कुछ फर्क नहीं है--
इंकलाब हैं, ज़िंदा हैं, रिवायत नहीं हैं हम
नायिका का बयान कविता भी बहुत बढ़िया रही।
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घनश्याम
वशिष्ठजी
आपकी गरीबी हट गई जानकर बड़ी खुशी हुई। और आपकी
क्या हटी अब तो भारत में कोई गरीब रहा ही नहीं। गर्व से कहिए कि हम अमीर हैं.भले
ही बदहाल हों। अपने को गरीब कहने का मतलब है सरकार की आलोचना।
बत्तीस
रुपये खर्च करके ,
पेट तो नहीं भर
पाउँगा
पर
इतना
निश्चित है -अब
गरीब नहीं कहलाउंगा
-घनश्याम वशिष्ठ
-घनश्याम वशिष्ठ
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