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Sunday, September 18, 2011

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हास्य-व्यंग्य-
हादसे से पहले 
हादसे के बाद
पंडित सुरेश नीरव
शादी से पहले,शादी के बाद की तर्ज पर हमारी सरकार हादसे से पहले रेड अलर्ट और हादसे के बाद हाई अलर्ट हो जाती है। बाकी के सामान्य दिनों में सरकार की मंशा रहती है कि लोग उपवास करें। इसलिए जनहित में वो बिना किसी सूचना के साल में तीन-चार बार मंहगाई जरूर बढ़ा देती है। और जब कोई उपवास करने की घोषणा करता है तो सरकार पुलिस के फलाहरी डंडों के जरिए उसका उपवास गांधीवादी तरीके से बड़ी विनम्रता के साथ तुड़वाती भी है। वैष्णव-जन सरकार से पीर-पराई देखी नहीं जाती। इसलिए उसने पहले बाबा रामदेव का उपवास और बाबा रामदेव दोनों को ही पुलिस से तुड़वाया। फिर अन्ना हजारे का उपवास तुड़वाने के लिए चौदह दिन और तेरह रातों तक जुगत लगाती रही। सरकार उपवास से वैसे ही बिदकती है जैसे लाल कपड़े से सांड़। अन्ना के उपवास टूटने पर वह राहत की सांस ले भी नहीं पाई थी कि दिल्ली के हाईकोर्ट में आतंकियों ने बम फोड़ दिया। सरकार फिर दुखी हो गई। हाई अलर्ट तो पहले से थी ही। धमाके के बाद फिर रेड अलर्ट हो गई। सरकार का यह दुख सनातन है। वह दुखी है कि वो अकेली आतंकवाद से नहीं लड़ पा रही है। क्या करे बेचारी। सरकार अबला, अकेली और आतंकी संगठन इत्ते सारे। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जनता से बार-बार कह रहे हैं कि हमें मिल-जुलकर आतंकवादी समस्या से लड़ना होगा। जनता के सहयोग के बिना अकेले आतंकवाद से निबटना सरकार के लिए संभव नहीं है। जनता सरकार की भावुक अपील पर पिघल जाती है। उससे सरकार की दयनीय हालत देखी नहीं जाती। जनता पता लगाकर खुद-ब-खुद उस जगह पहुंच जाती है,जहां आतंकवादी अपना आयटम पेश करनेवाले होते हैं। सरकार को सहयोग देने के इस भावुक प्रयास में कई उत्साही जन तो जान पर भी खेल जाते हैं। आतंकी वारदात हो और जनता सहयोग न करे तो क्या फायदा वारदात करने का। सरकार और आतंकी संगठन दोनों को ही पब्लिक सपोर्ट चाहिए। आतंकी संगठन इसलिए ही ईमेल पर अग्रिम आमंत्रण भेजते हैं- भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण पब्लिक तुम्हें बुलाने को, हे भारत के जन-गण-मन तुम भूल न जाना आने को। दर्शानाभिलाषी-इंडियन मुजाहिदीन। स्वागताकांक्षी-लश्करे तैयबा। इधर सरकार कहती है। सुरक्षा के इंतजाम पक्के हैं। हम आतंकियों की बंदर भभकी से डरनेवाले नहीं हैं। हमारी सुरक्षा एजेंसीयां पूरी तरह मुस्तैद हैं। सुरक्षा इंतजाम का जायजा लेने और सरकार को आतंकवाद के खिलाफ सहयोग देने की अपनी परंपरा के अनुसार पब्लिक फिर वहां पहुंच जाती है,जहां हादसा होने को होता है। आतंकी घटना निर्विघ्न,सफलतापूर्वक घट जाती है। हरबार नकारा साबित हुए  हमारे नेता फिर स्यापा करने लगते हैं। चैनलवाले इस भ्रम में कि शायद सरकार इसबार किसी नई डिजायन में स्यापा करेगी फिर उनके पीछे दौड़ पड़ते हैं। सरकार अपनी जेब में ऐसी घटनाओं की निंदा करने वाले प्रस्तावों से हमेशा लैस रहती है। वो बड़ी मेहनत से एडवांस में ऐसे प्रस्ताव तैयार रखती है। इधर बम फटा उधर निंदा की धमक में सरकार का मुंह फटा। कभी-कभी तो टीवी-कैमरे से संपर्क टूट जाने पर बेचारा सरकारी मुंह फटा-का-फटा ही रह जाता है। दुर्घटना से पहले हमेशा सक्रिय और दुर्घटना के बाद अंधेरे में तीर चलानेवाली नाना प्रकार की सुरक्षा एजेंसियां एक-दूसरे से- हम बने-तुम बने एक दूजे के लिए की निर्मल भावनाओं से ओतप्रोत होकर एक-दूसरे से आतंकियों को पकड़ने की मानवीय मनुहार करने लगती हैं। नेट पर आतंकी ईमेल कहां से आया था इसकी बारीक और दुरूह पड़ताल के सामूहिक प्रयास फिर एक नए उत्साह के साथ शुरू हो जाते हैं। और इससे पहले कि पिछला अफसाना किसी अंजाम तक पहुंचे पुरानी घटना के तथ्यों और सबूतों की धज्जिया उड़ाता हुआ एक नया धमाका हो जाता है। काफी लोग मारे जाते हैं। मुआवजे की खैरात के रूमाल से पीढ़ित परिवारों के आंसू भीगे चेहरे पौंछने संवेदनशील सरकार पब्लिक के घर जाती है। और आतंकवाद से लड़ने और सरकार का साथ देने के लिए बलिदान-व्यसनी पब्लिक फिर बलिदान देने को तैयार हो जाती है। पब्लिक की वफादारी से खुश होकर रेडएलर्ट और हाई एलर्ट की धुन पर भांगड़ा करती सरकार फिर उसे मंहगाई का एक नया तोहफा थमाकर उसका एहसान चुका देती है।
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पंडित सुरेश नीरव
मध्यप्रदेश ग्वालियर में जन्मे बहुमुखी रचनाकार पंडित सुरेश नीरव की गीत-गजल,हास्य-व्यंग्य और मुक्त छंद विभिन्न विधाओं में सोलह पुस्तकें प्रकाशित हैं। अंग्रेजी,फ्रेंच,उर्दू में अनूदित कवि ने छब्बीस से अधिक देशों में हिंदी कविता का प्रतिनिधित्व किया है। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह की मासिक पत्रिका कादम्बिनी के संपादन मंडल से तीस वर्षों तक संबद्ध और सात टीवी सीरियल लिखनेवाले सृजनकार को भारत के दो राष्ट्रपतियों और नेपाल की धर्म संसद के अलावा इजिप्त दूतावास में सम्मानित किया जा चुका है। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा आपको मीडिया इंटरनेशनल एवार्ड से भी नवाजा गया है। दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रमों के लोकप्रिय संचालक श्री सुरेश नीरव आजकल देश की अग्रणी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के राष्ट्रीय महासचिव हैं। समय सापेक्ष हूं मैं,जहान है मुझमें, मज़ा मिलेनियम,पोयट्री ऑफ सुरेश नीरव आपकी चर्चित पुस्तकें हैं। और चर्चित सीरियलों में कमाल है,प्रहरी,कंप्यूटरमैन तथा रंग-रंगीले-छैल-छबीले उल्लेखनीय हैं।

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