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Thursday, October 20, 2011

                                        आज़ाद हिंद फौज और नेताजी सुभाषचंद्र बोस


नज़रबंदी से फरार होकर अफगानिस्तान ,रुस और फिर ज़र्मनी पहुंचने के लिए सुभाष ने उसी रणनीति का प्रयोग किया जिसका प्रयोग प्रवासी क्रांतिकारी काफी पहले से करते रहे थे।अफगानिस्तान से रूस और फिर बर्लिन पहुंचकर उन्होने वहां 'इंडियन लिज़न' (भारतीय सैन्य दल ) का गठन किया।वे गुप्त रूप से सिंगापुर आये और आज़ाद हिंद फौज़ का नेतृत्व अपने हाथ में लिया।यह सारी प्रक्रिया बडी रोमांचक और रहस्य के आवरण में लिपटी हुई है।आइये इस पर से सिलसिलेवार ढंग से पर्दा हटाने का प्रयास करते हैं---------
२२अप्रैल १९२१ को इंडियन सिविल सर्विस छोडकर सुभाष महात्मा गांधी के आव्हन पर असहयोग आंदोलन में कूद पडे।देशबंधु चितरंजनदास ने उन्हें नेशनल कालेज़ के प्रिंसिपल पद का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होनें स्वीकार कर लिया।चौरी-चौरा कांड के कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो सुभाष ने कडी आपत्ति दर्ज़ करायी।
राष्ट्रीय आंदोलन के कई पडावों से गुज़रते हुए अंततः जनवरी १९३२ में सरकार ने सुभाष को घर में ही नज़रबंद कर दिया।जनवरी१९३२ से मार्च १९३३ के नज़रबंदी के काल में वेग गंभीर रूप से बीमार हो गये।सरकार ने उन्हे सशर्त रिहा किया और वे विएना सेनोटेरियम में इलाज़ के लिए भर्ती हो गये।
जब गांधीजी ने दूसरे असहयोग आंदोलन को भी वापस ले लिया तो सुभाज़ ने विएना सेनेटोरियम से ही लिखा-----"हम पिछले तेरह वर्षों से अपने को अधिकतम कष्ट देने और शत्रु को कम से कम कष्ट देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।पर यह रणनीति सफल नहीं हो सकी है।यह आशा करना बेकार है कि हम कष्ट उठाकर या प्यार करके अपने शासकों का ह्रदय परिवर्तन कर सकते हैं।"

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