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Tuesday, October 18, 2011

जुगाड़ूरामजी

हास्य-व्यंग्य-
जुगाङमेव जयते
पंडित सुरेश नीरव
हमारे शहर के जुगाङूरामजी जन्मजात जुगाड़ू हैं। इस कदर पैदाइशी जुगाङू कि मां-बाप के परिवारनियोजन के तमाम संयुक्त प्रयासों को सिंगट्टा दिखाते हुए जुगाङूरामजी ने अपने पैदा होने का जुगाड़ लगा ही डाला। जुगाङूरामजी की इस दुर्दांत हाहाकारी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही पराजित मां-बाप ने इनका नाम जुगाङूराम ऱक्खा। जैसा नाम वैसा काम। अपनी छोटी-सी जिंदगी में अपनी हैसियत और काबिलियत से ज्यादा बड़ी-बड़ी कामयाबियां जुगाङूरामजी ने जुगाड़ के बूते पर ही हथियाकर सभी योग्य सुपात्रों को चकरघन्नी बना दिया है। जुगाङ के बल पर कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते एक दिन कविता करने का इन पर अटैक पड़ गया। किस पाप घड़ी में कविता करने का यह क्रूर विचार इनके कलेजे में उगा इसकी पुख्ता जानकारी तो खुद जुगाङूरामजी के पास भी नहीं है मगर आज जुगाङूरामजी एक लंबे समय से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोकल कवि होने की हैसियत बनाए हुए हैं। उनकी अखंड साहित्यिक हरकतों से तंग आकर और उनके साहित्यिक आतंक से भयभीत होकर आखिर एक दिन भारी मन से नगरवासियों ने उनके अभिनंदन करने का लोमहर्षक फैसला कर ही डाला। अभिनंदन पर आमादा पब्लिक के जुझारू तेवर को भांपते हुए जुगाङूरामजी ने भी इस भावुक प्रस्ताव को मंजूर करने में ही भलाई समझी। अभिनंदन के मनोरंजक आयटम को और ज्यादा दिलचस्प बनाने के लिए संयोजकों ने समारोह को नाना प्रकार के टोटकों से लैस करने की ठान ली। और इसी कड़ी में उन्होंने जुगाङूरामजी के जीवन के अनेक अप्रकाशित गुप्तरंग पहलुओं को प्रकाशित करने के लिए धर्मपत्नी के बजाय उनकी धर्म साली को आर्त स्वर में मंच पर पुकार लिया। हास्य के पाउड़र और व्यंग्य की क्रीम से लिपे-पुते चेहरे को लेकर धर्मसालीजी डायरेक्ट ऐसी की तैसी ब्रांड ब्यूटी पार्लर से निकल कर मंच पर ऐसी धमकीं जैसे कि ऐबटाबाद में बिन लादेन की कोठी की छत पर  कोई अमेरिकन सील कमांडो टपका हो। धर्मसालीजी ने जुगाङूरामजी का ऐसा महीन स्वागत किया कि कूल-कूल कड़कड़ाती ठंड में भी उन्हें पसीने आ गए। और प्रसन्नतावश उनके हाथ-पांव फूल गए। कोलवर्णी धर्मसालीजी ने जुगाङूरामजी की तारीफ में ऐसे-ऐसे बयान दिए जिसे सुनकर वे मर्मांतक प्रसन्नता से मंच पर गर्म तवे पर रखी मछली की तरह छटपटा उठे। जुगाङूरामजी की धर्मसाली ने कहा कि मैं वैसे तो जुगाङूरामजी की फेमिली केबिनेट की जायज मेंबर नहीं हूं मगर हमेशा इनकी काली-पीली करतूतों को बाहर से ही अपना नैतिक समर्थन देती रहती हूं। मुझे आप इनके कालेधन की पासबुक मान सकते हैं। जब दो पैग लग जाते हैं तब जीजा जुगाङूरामजी रंग-रंगीले,छैल-छबीले कवि हो जाते हैं। मैं इनकी कविता की नग्ता से इतनी बुरी तरह प्रभावित हूं कि सम्मान से मैं इनको सार्वजनिकरूप से कविता का नागा बाबा,दुराचार का दाउद और और शरारत का शंकराचार्य कहते हुए गौरव का अनुभव करती हूं। बदमाशी की बहुमुखी प्रतिभा हैं जीजा जुगाङूरामजी। महाभारत के महानायक दुर्योधन की तरह विनम्र और दुःशासन की तरह सचरित्र। इनके सत्संग में आकर शहर के सभी चोर-उचक्के एक झटके में सम्मानित नागरिकों में शुमार होने लगते हैं। फिर इनमें खुद सम्मान का कितना चुंबकत्व होगा यह आप सब आसानी से समझ ही सकते हैं। आज जुगाङूरामजी का सम्मान हो रहा है। यह सम्मान जुगाड़ की ललित कला का सम्मान है। जुगाङूरामजी का सम्मान इनके भाग्य का सौभाग्य और साहित्य का दुर्भाग्य है। इनका कवि बनना राष्ट्रीय शोक और कौमी शोध का विषय है। ये जुगाङूरामजी की ही प्रतिभा है कि जिन कविताओं की पंक्तियों को ट्रक ड्रायवरों और टेंपोवालों ने भी अपने वाहनों पर लिखने से मना कर दिया ये उन्हीं बहुमूल्य कविताओं की दम पर साहित्य के बड़े-बड़े पुरस्कार पा गए। और तमाम ज्ञानवान अकादमियों के  एक साथ सलाहकार भी बन गए। जुगाङूरामजी ने मन से जिस भी काम को हाथ में लिया पूरी कुशलता के साथ उस काम का काम तमाम कर दिया। जिस सलीके से आप पानीदार लोगों की इज्जत पर पानी फेर देते हैं उस कला के लिए जुगाङूरामजी का नाम आज नहीं तो कल गिनीज बुक आफ रिकार्ड में जरूर शामिल किया जाएगा ऐसा हम सभी का मानना है। जुगाङूरामजी मंच पर पूरे जोश के साथ हाथ से कविता पढ़ते हैं,टांग से कविता पढ़ते हैं कभी-कभी वे दिमाग से भी कविता पढ़ा करें इस महीन सलाह के साथ मैं यह भी अखंड विश्वास रखती हूं कि दिमाग न होने के बावजूद दिमाग से कविता पढ़ने का जुगाड़ जुगाङूरामजी जरूर ही लगा लेंगे। जुगाङूरामजी  का फ्यूचर बहुत ब्राइट है। क्योंकि आज के जमाने में प्रतिभा नहीं जुगाड़ ही परम सत्य है। इसीलिए आजकल लोग सत्यमेव जयते नहीं जुगाङमेव जयते को जीवन की सफलता का मूलमंत्र मानने लगे हैं। बिल्कुल जुगाङूरामजी की तरह।
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ज़ियाबाद
मोबाइलः09810243966



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