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Thursday, November 10, 2011

रोटी नहीं देते मगर बंदूक देते हो मुस्तकबल-ए-औलाद को खुद फूंक देते हो


कलम की बात करते हैं वतन कि बात करते हैं
हम अब भी गुलिस्तां की चमन की बात करते है
रंज़-ओ-गम है मगर हमने अभी आपा नहीं खोया
इस दौर-ए-दहशत में भी हम अमन की बात करते हैं
अमन की बात करते हैं,     मगर कायर नहीं हैं हम
सूखे नहीं आंसू--------------------    आंखे अभी हैं नम

                                                  रोटी नहीं देते मगर बंदूक देते हो मुस्तकबल-ए-औलाद को खुद फूंक देते हो      

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