जब भी उस गुलबदन की याद आई
हो गई पुर-बहार तनहाई।
चौंक उठे हादसात दुनिया के
मेरे होठों पे जब हंसी आई।
जब किसी ने तुम्हारा नाम लिया
जाने क्यूं मुझको अपनी याद आई।
देख ऐ शेख़ मेरे सागर में
अपनी जन्नत की जलवा- फ़रमाई।
नरेश कुमार शाद
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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