ज़रा याद इन्हें भी
कर लो
आज का दिन बड़ा
ऐतिहासिक है। आज के ही दिन हमारे देश के लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद पर आतंकी
हमला हुआ था। देश की अस्मिता के लिए कुछ बहादुर बांकुरे शहीद हुए थे। मगर देश पर
हमला करनेवाले आज भी जिंदा हैं। हमारा कानून कहता है कि गलती से भी किसी निर्दोष
को सजा न मिल जाए इसलिए गहरी पड़ताल बहुत जरूरी है। देश की सर्वोच्च न्याय संस्था
यानी कि सुप्रीमकोर्ट ने भी जिसे फांसी की सजा सुना दी हो हम उसके फैसले को आज तक
अमली जामा नहीं पहना पा रहे। हम देश के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। हम कोई फैसला
जल्दी नहीं लेते। हमें मौका दीजिए। थोड़ा और सोचने का। अरे जिनके परिवार के सदस्य
मरे हैं उनका क्या है वो तो जल्दी मचाएंगे ही। हम हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं
करते। मामला देश का है। हमें तसल्ली से सोचने दीजिए। हम फिरंगी सरकार नहीं हैं जो
महज सरकारी खजाना लूटने पर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल,अशफाकउल्लाह और रोशनसिंह को
फांसी पर लटका दें। सिर्फ संसंद में एक पटाखा छोड़ने के जघन्य जुर्म में
भगतसिंह,राजरगुरू और सुखदेव को फांसी पर लटका दें। हमें सोचने दीजिए। आखिर हम देश
के प्रजातंत्र हैं। शहीदों के हिमायती पथभ्रष्ट सिरफिरे नीरव-पथिक तब भी थे आज भी
हैं। कल भी रहेंगे। लेकिन उन्हें न तब किसी ने सीरियसली लिया था और न कोई आज ले
रहा है न कोई कल लेगा। आखिर व्यवस्था और विद्रोह में कुछ तो फर्क होता है। आप
उन्हें श्रद्धाजलि बगैरा-बगैरा जो दे रहे हैं जल्दी से दीजिए प्रजातंत्र में सबको
आजादी है मगर हमें अपना काम करनें दीजिए। हमें इनोशल ब्लैकमेल मत करिए। हम चाहते
हैं कि मूर्खों पर लगाम लगाने के लिए इन फूहड़ सोशल साइटों को ही फांसी पर लटका
दें और इन पागलों को गोली मार दें। मगर हम किसी निर्दोष को फांसी पर नहीं लटका
सकते।
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