कविता-
मंहगाई
जब जब सरकार ने उपयोगी वस्तुओं
की कीमतें बढाई,
जनता सड़कों पर आई, और खूब चिल्लाई.
मगर यह एक कड़वा सत्य है मेरे भाई
... जनता कुछ दिन चिल्लाती है,
फिर सब कुछ भूल जाती है.
सरकार नहीं भूलती उसे याद आ जाती है,
और कीमतें फिर बढाई जाती है.
जनता फिर सड़कों पर आती है,
और उसी तरह चिल्लाती है.
फिर थक हार कर चुप हो जाती है,
यही कहानी बार बार दोहराई जाती है.
-कमल शर्मा (हास्यकवि)
शहीद नगर, आगरा
मोबा० 9219298950
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