कलम की बात करते है वतन कि बात करते हैं
हम अब भी गुलिस्तां की चमन की बात करते है
रंज़-ओ-गम है मगर हमने अभी आपा नहीं खोया
इस दौर-ए-दहशत में भी हम अमन की बात करते हैं
अमन की बात करते हैं मगर कायर नहीं हैं हम
सूखे नहीं आंसू---, आंखे अभी हैं नम
रोटी नहीं देते मगर बंदूक देते हो
मुस्तकबल-ए-औलाद को खुद फूंक देते हो
अगर लडने की हसरत है तो लड ले सामने आकर
कुछ ना पा सके पीठ पर यों आज़मा कर
तेरे पाले
हुये कुत्त ये अलकायदा-लश्कर
पागल हो
चुके है अब झिझोंडेंगे
तुझे कसकर
संभल सकता
है तो अब भ संभल जा
आंख के अंधे
नफरतों का
बोझ ना पायेंगे
कंधे
पापों का
घडा तेरे यकायक फूट
जायेगा
हमारे देखते
ही देखते तू टूट जायेगा।
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