सर्द हवा से गुल हुआ, सूरज का भी ताप।
इतना मत इतराइए ,बने जो आका आप॥
चढ़ता सूरज देख कर , भूले जो औकात ।
सज्जन ने पूछा नहीं ,दुर्जन मारी लात॥
उनके कर में कुछ नहीं, लेकिन बने दिनेश।
जाती, धर्म, सरकार में ,ऐसे कई विशेष॥
रवि,दिनेश या भास्कर ,यदि बन जाए आप ।
अंधियारा हरते रहें,दें फागुन सा ताप॥
-राजमणि
No comments:
Post a Comment