श्री राजमणिजी,
सज्जन ने पूछा नहीं ,दुर्जन मारी लात॥
उनके कर में कुछ नहीं, लेकिन बने दिनेश।
जाती, धर्म, सरकार में ,ऐसे कई विशेष॥
रवि,दिनेश या भास्कर ,यदि बन जाए आप ।
अंधियारा हरते रहें,दें फागुन सा ताप॥
-राजमणि
विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपकी मेहनत का सरकारी मूल्यांकन हो गया है। तो सबसे पहले तो इस भौतिकोविभागीय उपलब्धि के लिए बधाई। दूसरी बधाई इतने बेहतरीन दोहों के लिए । इनका इनर करेंट वक्रोक्ति का नायाब नमूना है। और विषय वस्तु समय सापेक्ष है।
मन प्रसन्न हुआ।
इन दोहों के लिए खास बधाइयां--
चढ़ता सूरज देख कर , भूले जो औकात ।सज्जन ने पूछा नहीं ,दुर्जन मारी लात॥
उनके कर में कुछ नहीं, लेकिन बने दिनेश।
जाती, धर्म, सरकार में ,ऐसे कई विशेष॥
रवि,दिनेश या भास्कर ,यदि बन जाए आप ।
अंधियारा हरते रहें,दें फागुन सा ताप॥
-राजमणि
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