भगवान सिंह हंस रचित बृहद भरत चरित्र महाकाव्य के कुछ प्रसंग आपके आनंद के लिए --
पति का हुआ संकल्प पूरा | प्रभु को सौंपा राज्य सम्पूरा ||
तप में बीते चौदह वर्षा || स्वामी! निशि आयी ले हर्षा ||
अब पति का संकल्प पूरा हो गया | प्रभु को सम्पूर राज्य-पाट सौंप दिया| मेरे स्वामी के तप में चौदह वर्ष बीत गए| हे स्वामी! आज रात्रि हर्ष लेकर आयी है|
चाँदनी श्वेत अंक पसारे | पुहुपित लता सुगंध प्रसारे ||
निशिपति मेटे निशि तम सारा| मैं करूँ इन्तजार तिहरा||
आज श्वेत चाँदनी ख़ुशी में अपने अंक पसार रही है| सर्वत्र लता- पुष्प सुगन्धित हो रहे हैं | निशिपति ने अपनी अपनी प्रिया निशि का सारा अन्धकार मिटा दिया है| हे स्वामी! मैं आपके आने का इन्तजार कर रही हूँ|
यदि किसी का पति गया भोरे | लौटा नहीं निशा झकझोरे ||
नहीं सोहि घर खाना पीना| जैसे जल बिन भटके मीना ||
हे स्वामी! यदि किसी का पति सवेरे गया हो और शाम तक नहीं लौटे तो रात्रि झकझोरने लगती है| तब पत्नि को घर में खाना-पीना आदि कुछ भी अच्छा नहीं लगता है| और वह पत्नि ऐसे तड़फती है जैसे जल बिना मछली|
द्वार पर बिलोक बार बारा| नाथ ने कीन्ही बहु अबारा ||
वह तो एक दिन में अकुलायी| मैं ने चौदह वर्ष बितायी||
और वह द्वार पर जाकर बार-बार देखती है कि कहीं पतिदेव आ रहे हों | हे नाथ! आपने आने में बहुत देर कर दी| वह पत्नि तो एक दिन में अकुला गयी | मैंने तो चौदह वर्ष बितायी हैं|
अर्द्ध रजनी बीती अब, स्वामि ने की अबार|
श्रृंगार युक्त मांडवी , पति को रही निहार ||
अब आधी रात बीत गयी| स्वामि ने बहुत देर कर दी| श्रृंगारमयी मांडवी अपने पति के आने को निहार रही है|
प्रस्तुति ---
योगेश विकास
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