Search This Blog

Monday, January 30, 2012

पतवारों का तूफानों से समझौता है

पतवारों का तूफानों से समझौता है
जयचंदों ने गोरी को भेजा न्योता है
सारे रक्षक मस्त पडे बेसुध सोये हैं
कर्णधार सब सुरा सुंदरी में खोये हैं
कलमकार सत्ता के चारण बन ऐंठे हैं
लोकतंत्र की शाखाओं पर उल्लू बैठे हैं
केवल क्रिकेट ही है कहानी घर-घर की
कुंठित-अवसादित है जवानी हर घर की
देशभक्ति की बातें फिल्मी माल हुईं
प्रतिभा हीन नग्नतायें वाचाल हुईं
भारत का अस्तित्व मिटा जाता है
इंडिया-शाइनिंग करता मुस्काता है
आज नहीं गांधी, न जवाहरलाल यहां
खोये प्यारे बाल-पाल औ लाल कहां
नहीं गर्जना करते,    प्यारे नेताजी
करते हैं नेतृत्व फिल्म अभिनेता जी
रोज आंकडे हमे   बताये जाते हैं
सेंसेक्सी कुछ ग्राफ दिखाये जाते हैं
बतलाते हैं अंतरिक्ष में पहुंच गये हैं
हमने तिरछे नयन किसी के नहीं सहे हैं
और न जाने कितनी ही ऐसी बातें
मधुर चाशनी में लिपटी कटुतम घातें
रोज़ यहां होती हैं समझते हम सब हैं
देख रहे चुपचाप बोलते हम कब हैं?
खतरे की चर्चा करते हैं मित्रों से
देशभक्ति दिखलाते हैं चित्रों से
पर चर्चा के आगे बात नहीं बढती है
कुछ करने की धुन सिरे नहीं चढती है
क्यों है ऐसा आओ आज विचार करें
सुप्त शिरा का लहू हुआ स्वीकार करें
कायर -लोलुप-बकवादी हैं हम मानें?
ढोंगी -पाखंडी-उन्मादी हैं सब जानें
हम नहीं शिवा-राणा-सुभाष के बेटे हैं
कायरता के तत्व आत्मा में बैठे हैं
लालकिला ,संसद,स्वाभिमान पर हमले को
अपमानित करने वाले हर एक ज़ुमले को
सह लेते हैं चुपचाप    विवशता क्या है?
इन बमों आयुधों अस्त्रों की आवश्यकता क्या है?
भरे हैं शस्त्रागार देश अपमानित है
भारत का साहस- शौर्य हुआ क्यों शापित है?
इस तरह हज़ारों प्रश्न     छेदते हैं हरदम
कितना कुछ हो चुका मौन क्यों फिर हैं हम?
जाती है लाहौर      पहुंचती करगिल को
ये अमन -चैन की बसें कंपाती हैं दिल को
भोले हैं अपने लीडरान कैसे मानें?
है बेंच दिया ईमान क्यों न हम ये जानें?
संसद में खाते कसम इमच भर भूमि ना देंगे
अपनी धरती ,अपनी ज़मीन हम ले लेंगे
फिर उसी भूमि के लिये वार्ता होती है
भारत मां लाचार सिसकती रोती है
जनता को छलते हरदम मूर्ख बनाते हैं
झूठे-कपटी-मक्कार न तनिक लजाते हैं
तो,हो चुके बहुत षडयंत्र ,और षडयंत्र ना होंगे
अपनी करनी का फल अब ये नेता भोगें
इनकी करो पिटाई मारो जूतों से
तोडो इनके चेहरे लातों घूसों से
दिखे जो भ्रष्टाचारी दौडाओ ,मारो
मत जनार्दन को और पुकारो
बनो स्वयं  जनता-जनार्दन पांचजन्य फूंको
लोभी-लालची ठग पापी के चेहरे पर थूको
कस कर तुम हुंकारो देखो शिवनर्तन आता है
परिवर्तन का काल क्षितिज़ से हमें बुलाता है

No comments: