सुबह ८ बजे पत्नी को ताकीद कर कि सबसे पहले वोट डालेंगे फिर कुछ करेंगे मेवाड इंसटीट्युट स्थित पोलिंग बूथ पर पहुंचा।पत्नी के नाम की परची मिल गयी पर मेरा नाम नदारद था।बडी ज़द्दोज़हद के बाद पता चला कि मेरा वोट २ किमी दूर स्थित सुनेजा पब्लिक स्कूल के १८८ न०पोलिंग स्टेशन पर है चले खैर मनाते हुये।वहां पहुंचे तो बी०एल०ओ० निशा रानी नेसे परची प्राप्त की तो उस पर फोटो किसी और की थी पर हम भी घर से वोट डालने की कसम खा कर निकले थे सो पासपोर्ट,वोतर आई कार्ड,बिजली का बिल ,प्रापर्टी बिल की रसीदें घर से लेकर दुबारा पोलिंग बूथ पर पुंच गये।बी०एल०ओ० ने मनोहारी कुदृष्टि डालते हुये आश्वस्त किया कि आपको अब वोट डालने से कोई रोक नहीं सकता हस्ताक्षरित परची थमाई तो हम पूरे ठसके के साथ पोलिंग बूथ दाखिल हुये।
और जैसे ही पोलिंग आफिसर ने हमारी परची वोटर कार्ड न० हुलिये आदि का मिलान किया तो हाथों के तोते ही उड गये।मेरे वोटर न० पर किन्ही अमित मौर्या का नाम चित्र समेत चिपका था।इधर ऊधर खडे लोगों और प्रिज़ाइडिंग अफसर की हिकारत भरी निगाह का कहर झेलते हुये मानों मैं फरज़ी वोटिंग करने गया था,झेलते हुये।चुपचाप वहां से खिसक लिया।घर आकर टी०वी० कोला तो स्क्रीन पर मेरी जैसी खिसियाहट लिये केज़रीवाल महोदय भी विराजमान थे।इसे अपने नाम'अरविंद'का प्रताप मानकर दिल मसोस कर और भीड से अलग होने का आश्वासन स्वयं को दे ही रहा था कि समस्त समझदारी के प्रतीक पुरूष दिग्विजय सिंह टी०वी० की स्क्रीन पर नमूदार होकर नसीहत दे रहे थे कि '-----उन्हे अपने वोट के होने के बारे में पहले ही सुनिश्चित करना था,"मन तो हुआ ज़नाब से पुंछू कि उनके श्रधेय माता-पिता ने गर्भाधान संस्कार का जो मुहूर्त निकाला था वैसा संयोग दुबारा कब बनने वाला है।
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