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Monday, February 6, 2012


पुस्तक समीक्षा-
 शब्दों की उपस्थिति अपनी कलात्मक गंध के साथ
 आज के यंत्र केंद्रित और यंत्राश्रित जीवन शैली के अकविता समय में
गीति-रचना का सृजन कोई सरल बात नहीं है। सरल बात वैसे तो कभी भी नहीं रही है। गीत लिखना मानो हवा के आंचल में गांठ बांधना और धूप की किरणों से छांव को बुनने-जैसा बारीक और हुनरमंद काम है। और वह भी ऐसे दौर में जबकि या तो छंदमुक्त कविताओ का विराट उत्पादन हो रहा हो या फिर लोग ग़ज़ल कहने की जगह ग़ज़ल लिखने पर आमादा हों गीतों में खुद को उतारना निश्चित ही अभ्यास-साध्य हो जाता है। मगर सृजन की इस अपसंस्कृति में मूल्यों की आवृत्ति-मूलक पड़ताल से लैस यश मालवीय का गीत संग्रह बुद्ध मुस्कुराए एक मधुर आश्वस्ति लेकर सामने आया है। जिसका कि रचनालोक बाजार की हुकूमत में अपने ही वजूद से बेदखल होते आदमी को मौसमों की सारी जिदें और हदें तोड़कर फूल पर ठहरी ओस के ऐसे नर्म-नाजुक मुकाम पर लाकर खड़ा करता है जहां कि वह अनकहे खामोश अफसोस को छिटककर गीत के हर अंतरे में अपनी सांसों को बोने की उल्लासमयी कोशिश में जुट जाने की दमखम रखता है। गीतों  की भाषा में में एक खिड़की-सी खुलती है जहां से अनुभूति झांकती है अभिव्क्ति हो जाने के लिए। गीतों के लोक में जो समय टहल करता है वह समय घड़ी से बंधा समय नहीं है बल्कि घड़ी के बाहर का वह समय है जो कालजयी है। संग्रह पढ़कर एक बात और  बड़े पारदर्शी ढंग से सामने आती है कि यश मालवीय सफलतापूर्वक गीतों को चूड़ांत शब्दावली और अटपटी अलंकरण संपदा से निकालकर अनुभूति के उन अक्षांशों में ले जाते हैं जहां स्टेशन,प्लेटफार्म,एसटीडी, आईएसडी, पीसीओ, की-बोर्ड, अंडरटेकिंग, क्लोनिंग,पेशेंस, और ट्रंप-जैसे तमाम प्रवासी शब्द अपनी मौलिक कलात्मक गंध के साथ गीत-देश की न केवल नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं बल्कि चेतना के समय सापेक्ष अंतर्द्वद्व को एक मुकद्दस प्रामाणिकता के साथ व्याख्यायित और रूपायित भी करने लगते हैं। शब्द के इस बोधिवृक्ष के नीचे ही तथ्यगत,तत्वगत और गीतमुखी तथागत मुद्रा में बुद्ध मुस्कुराते हैं। कुल मिलाकर इस संग्रह के गीत समय की सितार से निकला यथार्थ का वह सारस्वत संगीत है जिसकी असंदिग्ध चिरंजीविता खुद-ब-खुद यश को यशस्वी बनाने की प्रभावी वकालत करती-सी लगती है। सविश्वास कहा जा सकता है कि यह संग्रह अंतर्मन को रचनात्मक पुलक से भरने के हर संभव चाक-चौबंदी इंतजामों के साथ ही पाठको के सामने आया है।
-सुरेश नीरव

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