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Friday, July 6, 2012

देशभक्ति के यक्ष प्रश्न




देशभक्ति के यक्ष प्रश्न
आज भारत देश अतिवाद के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसका खामियाजा उसे निकट भविष्य में भुगतना होगा।आधुनिक तकनीक और विज्ञान इस अतिवाद को दूर करने के नहीं अपितु बढाने के साधन सिद्ध हुये हैं।सोशल मीडिया भी इस कट्टरता और अतिवाद को बढा ही रहा है।कट्टरता को किसी संप्रदाय विशेष से ना जोडते हुये मैं कह सकता हूं कि सभी संप्रदाय इसका उपयोग अपनी क्षमता भर कर रहे हैं।
अभी दो तीन दिन पहले मेरे एक मित्र ने भारतमाता की तस्वीर फेसबुक पर लगाई ।कुछ देर बाद एक मदांध मुसलमान ने बडी अश्लील भाषा में कमेंट किया।हमारा मित्र उग्र राष्ट्रवादी है उसने मुझे लिंक भेजकर ज़बाव देने को कहा।मैं जब उस बदतमीज ,देशद्रोही की वाल पर पहुंचा तो वहां तीन अर्धनग्न स्त्रियों पर सीता,पार्वती और दुर्गा लिखा था।उसकी बदतमीजी का विरोध करने वालों का स्वर ऐसा था जैसे प्रार्थना कर रहे हों।मैने शालीनता को परे रख उसकी मां बहनों को याद करते हुये बताया कि जिन पवित्र नामों के साथ तू ये बदतमीजी कर रहा है वह तेरे बाप-दादाओं की भी पूज्य हैं,मां है।तेरे धर्म ने तुझे ऐसे ही मां का सम्मान करना सिखाया है।अन्य कई मित्र  भी इस अभियान में कूदे और दस मिनट के भीतर वह मूर्ख बदतमीज फेसबुक से गायब हो गया।

मित्रों आप इस घटना से किसी निष्कर्ष पर मत पहुंचिये-,दूसरी घटना सुनिये--- 
पिछले दिनों मेरे शहर शाहजहांपुर में काकोरी कांड के लिये फांसी चढने वाले अमरशहीद रोशन सिंह के वंशजों पर ज़ुलम हुये।उस झोपडी तक को जला दिया गया जहां वे सिर छुपाते थे।मैने अपने मित्रों के साथ मुहिम चलायी कि उस परिवार की सुरक्षा और आवश्यकता का इंतज़ाम करना है।और तीन दिन में हम पीडित परिवार को पुलिस सुरक्षा और कुछ आर्थिक सहयोग दिलाने में कामयाब हो गये।आप जानना चाहेंगे इस मुहिम में सबसे ज़्यादा मेहनत किसने की? शाहजहांपुर का एक मुस्लिम युवक जो अभी कालेज का छात्र है।इस विषय पर मेरी लिखी पोस्ट को सुबह से लेकर रात शेयर करके इस मुस्लिम लडके की आंखे सूज गयीं।अपने साथियों को निरंतर अपने कमेंट्स और पोस्ट से झकझोरता रहा।मैं राजधानी में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम के आयोजन में फसा था पर वह देशभक्त नौजवान निरंतर दर्जनों बार फोन कर मुहिम को चलाने के बारे में विचार विमर्श करता रहा।

ऐसे कई अपने निज़ी अनुभव मैं आपके साथ शेयर कर सकते हैं ।क्या इन उदाहरणों से हम मुसलमानों को गद्दार या देशभक्त घोषित कर सकते हैं? कुछ लोग यह कह सकते हैं कि मुसलमानों की देशभक्ति के उदाहरण तो ढूढे से मिलेंगे उनके आतंकवादी होने के तो रोज ही मामले सामने आते हैं।बात तो यह भी सही है।फिर क्या करे२० करोड मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने को कह दें।मैने वे आंकडे देखे हैं जो यह सिद्ध करने के लिये उदधृत किये जाते हैं कि जहां जहां मुसलमान बढे आतंकवाद बढा।आंकडों की नज़र से तो यह बात भी सही लगती है पर किसी देश मे २० करोड छोडिये २लाख आतंकवादी हों तो वह देश क्या लेबनान बनने से बच सकता हैअच्छा मित्रों ये बताइये क्या आज आप मुसलमानों का कोई  मुसलिम नेता बता सकते हैं जो मुलायम सिंह आदि से ज़्यादा मुसलिम हितैषी होने का खम ठोकता हो।आप इसे वोट की राजनीति कह सकते हैं पर जो लोग देश ke ऊपर वोट को तरज़ीह देते हैं वे गद्दार नहीं हैं ? चलिये छोडिये सब बातें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर तो इन गद्दारो को मिटाने के लिये ही लगी थीं आपने तो उनसे अपना संबंध होना ही नहीं स्वीकार किया।वामपंथियो और हमारे देशभक्तों में सांप नेवले का वैर है।तरूण विजय की वैचारिक स्पष्टता का मैं भी घनघोर प्रशंसक हूं पर उनके समन्वयवादी गुण ने तो मुझे बडे ऊहा पोह में डाल दिया।पिछले दिनों तरूण विजय ने अपनी पुस्तक का विमोचन नामवर सिंह से करवाया।क्या ये वैसा ही नही है जैसे लालकृष्ण आडवाणी का ज़िन्ना की मज़ार पर पुष्प अर्पित करना?
जब हम इतने सारे देशद्रोहियों के साथ हंसते गाते गलबहियां करते या यों कहिये उनकी कृपा के लिये लालायित होकर उनके पीछे दुम हिलाते घूम सकते हैं तो फिर मुसलमानों से ही देशभक्ति का सर्टीफिकेट क्योंटू नेशन थ्योरी तो इकबाल से पहले सावरकर लाये थे।'आप कह सकते हैं कि मैं ये सारी शिकायतें अपेक्षायें 'देशभक्तोंसे ही क्यों कर रहा हूंराज करने वाले कांग्रेसियों से क्यों नहींभाई कांग्रेस तो सदैव से 'प्रो मुस्लिम है' यह स्वीकारने में ना तो कांग्रेस को हिचक है और ना हमें मानने में पर देशभक्ति का प्रमाणपत्र जारी करने वाले हमारे मित्रों को ये क्या हो गया कि मंदिर को भूल गये,प्रज्ञा को भूल गये और याद रहा तो बस इतना कि ज़िन्ना राष्ट्रवादी था।कांग्रेस ने सत्ता पाकर ६० साल में जो नहीं कहा आपने सत्ता की झलक भर से ये कह दिया।
नेताओं के लिये सत्ता आवऽयक हो सकती है और वे उसके लिये कोई भी समझौता कर सकते हैं पर 'कोई भी समझौता जो आने वाले समय में देश के लिये ज़हर सिद्ध होने वाला हो उसे क्या हम भी स्वीकारने को तैयार हैं?
हमारे कुछ उत्साही मित्र गांधी और नेहरू को पानी-पानी पी पीकर कोसते हैं उनकी अदूरदर्शिता औृ चरित्रहीनता के अनगिनत उदाहरण बताते हैं।गोपाल गोडसे की 'गांधी वधपढने का सुझाव देते हैं।उनके तमाम तर्कों को सुनने के बाद मैं केवल एक निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि नाथूराम गोडसे गांधी का सच्चा भक्त था वरना जिस मोहनदास करम चंद गांधी को उसके अंतिम दिनों में पटेल और नेहरू ने देश विभाज़न का निर्णय लेते समय विचार-विमर्श के लायक भी नहीं समझा।जो १५ अगस्त १९४७ की रात नोआखाली में अकेले भटक रहा था जो किसी भी दिन गुमनाम मौत मर सकता था उसे'शहीदका 'राष्ट्रपिता'का सही अर्थों में दरजा नाथूराम गोडसे ने ही दिलाया।
बहुत सी बाते हैं मित्रों बहुत से उदाहरण हैं आज के भी और पुराने भी पर कुछ प्रश्न जिनका जबाव आज नहीं तो कल इस देश के हिंदू-मुसलमानों को आने वाले समय में देना ही होगा उन्हें पूरी ज़िम्मेदारी से पूंछ रहा हूं इस उम्मीद में कि आप भी इन प्रश्नों के उत्तर इतनी ही गंभीरता से तलाशेंगे।पहले मुसलमानों से ही सवाल करता हूं---
१-क्या इस देश के मुसलमानों के बाप-दादा यहीं की पैदाइश थे या फिर ईरान और अरब से ही आये थे।यदि हां तो राम,सीता,पारवती यानी दूसरे धर्मों के महापुरूषो का तुम से कोई संबंध नहीं यदि है तो जो लोग मुसलमानो के नाम मौका लगते ही इन प्रतीको और आस्थाओं का अपमान करते हैं,उनके विरूद्ध मुसलिम समाज ने क्या कदम उठाये?
२-१२० करोड के भारत में २० करोड मुसलमान द्वेष,घृणा अलगावबाद के सहारे ज़िंदा रह सकते हैं?
३-देशभक्तों की बात आती है तो गिनती अशफाकउल्ला खां,मौलवी अहमदुल्ला शाह जैसे आज़ादी पूर्व के इने गिने लोगों तक सीमित क्यों हो जाती है,क्या आज़ादी के बाद मुसलमानों की देशभक्ति समाप्त हो गयी?
४-पुलिसिया कार्यवाही में अक्सर निर्दोष मारे जाते हैं ।गेहूं के साथ घुन पिसता ही है गोली यह नही देखती कि अपराधी है या निर्दोष फिर मुसलमानो पर ज़ुल्मों का हवाला देने वाले इश्तहारों के खिलाफ क्यों नहीं खडा होता आम मुसलमान।
५-गुजरात के दंगों की बात तो की जाती है पर साबरमती एक्सप्रेस को भुला दिया जाता है ।मोदी ने जो किया वह निंदनीय नहीं दंडनीय है पर साबरमती एक्सप्रेस हादसे के लिये उस में शामिल लोगों के साथ क्या वे लोग भी ज़िम्मेदार नही है जिन्होने ये सब होने दिया,तथ्य बताते हैं कि गोधरा के बहुसंख्यक मुसलमानों को उस घटना की जानकारी थी?

अब हिंदुओं से भी ५ सवाल--
१-यदि किसी देश के २० करोड लोग गद्दार हों तो क्या उस देश का एक भी दिन चलना संभव है?
२-मुसलमानों का अंतःकरण सुधारने से पहले लालू-मुलायम की शुद्धि के लिये क्या कर रहे हैं?
३-जिस तरह दिन रात 'जयहिंद'बोलने वाला पुलिसिया ईमानदार नहीं हो जाता वैसे ही केवल'भारतमाता की जयऔर'वंदेमातरम'बोलना देशभक्ति की गारंटी नहीं हो सकते।फिर मुसलमानों से ये शब्द बुलवाने की ज़िद क्यों?
4-सनातन  धर्म में भी निर्गुण और ऐकेशऽवर ब्रह्म की बात है फिर इस्लाम के विरोध का सैद्धांतिक आधार क्या है? ( मैं हिंदू शब्द का उपयोग नहीं कर रहा क्योंकि हमारे किसी प्राचीन ग्रंथ में हिंदू शब्द नही है)।सहिष्णुता हमारे धर्म और संस्कृति की कुंजी है हमने तो बुद्ध को भी दसवां अवतार बना समाहित कर लिया फिर इस्लाम के मामलें में क्यों चूक हुई?
५-जिस तरह भारतीय जनता पार्टी 'प्रो मुसलिम बनकर कांग्रेस के खिलाफ सफल नहीं हो सकती वैसे ही सनातन धर्म इस्लामिक बर्बरता का मुकाबला  बर्बर बनकर या कट्टर होकर नही कर सकता। देश जब हमारा है तो हम किसी और  की ओर इसे जोडे रखने और संभालने के लिये क्यओ निहारते हैं।प्रचार से और निज़ी महत्वाकांक्षाओं को परे रख कितने हिंदू देश के लिये प्राण -पण से लगे हैं?

मेरे ये प्रश्न हिंदू-मुसलमान दोनों के लिये असुविधाजनक हो सकते हैं पर क्या एन प्रश्नों से कतराकर हम स्वयं को ही नहीं छल रहे हैं ?
जो लोग मेरे इन प्रश्नों से नहीं जुडेंगे या प्रतिक्रिया नहीं देंगे ऐसा नही वे देश भक्त नही या इस देश के लिये कुछ कर नही रहे।ऐसा मै इसलिये मानता हूं क्योंकि मैं ज़ार्ज़ बुश से इत्तेफाक नहीं रखता कि जो हमारे साथ नहीं वह हमारा शत्रु है।
                                          ----अरविन्द पथिक 

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