क्यू इतना ज्यादा मुस्कुरा रहे हो |
ग़ज़ल-
(एक बहुत पुरानी ग़ज़ल आज आपके हुजूर में पेश करता हूं)
हो ज़हर दवा में तो इलाज कैसा है
वो पूछते है हमसे कि मिज़ाज कैसा है
दिल से जिसने चाहा वही ख़ाक हो गया
रोशनी के घर का ये रिवाज़ कैसा है
ताज उन्हें मिल गए जो दे गए दगा
सोचता हूं आज का समाज कैसा है
पुरखे जिनकी देश की मिसाल बन गए
उनके वारिसों का देखो आज कैसा है
जनता गई सूखती नेता फूलते गए
खेत में उगाया ये अनाज कैसा है
संसद में नोट खुले आम चल रहे
बापू तेरे सपनों का सुराज कैसा है
कहकहों की आंख में भी अश्क भर गए
सोचता हूं दिल का मेरे साज कैसा है।
-पंडित सुरेश नीरव
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