आज ब्लॉग पर
प्रकाश प्रलयजी ने
कई दिनों बाद
अपनी हाजरी दर्ज कराई है
साथ ही ग्वालियर पहुंचने की
खबर भी पहुंचाई है
बधाई है,बधाई है।
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अरविंद पथिकजी ने अन्ना हजारे के फ्लॉप होते आंदोलन को लेकर जो समीक्षा की है वह बहुत ही सटीक है। दरअस्ल यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है।अन्ना का आंदोलन यदि फ्लॉप हो रहा है तो इसके निहितार्थ बिंदुवार यह हो सकते हैं
1.- कि जनता मोहभंग की स्थिति में हैं। और उसे इस आंदोलन से कोई सामाजिक परिवर्तन की भूमिका की आस नहीं रही है। कारण उनकी लचर रणनीति या कुछ ऐसे लोगों का वर्चस्व जिन्हें जनता अपना आदर्श मानने को तैयार नहीं।
2.- सरकार द्वारा जनता में यह संदेश पहुंचा देने में कामयाबी कि लोकपाल आएगा तो हमारी मर्जी से आएगा और हमारे ही अनुसार आएगा।बाकी सब ड्रामा है।
3.सभी सरकारी और गैर सरकारी दलों का संसद में लोकपाल विधेयक को लाने में एक-जैसा ही व्यवहार। संसद के बाहर की कथनी और भीतर की करनी में दोरंगापन।
4. अत्यंत दुखद पहलू यह कि भ्रष्टाचार को जनता द्वारा कोई मुद्दा न मानना।
5. आंदोलन को उन लोगों का भी समर्थन जिन्हें जनता पाक-साफ नहीं मानती।
कारण चाहे कुछ भी रहे हों मगर एक सामाजिक परिवर्तन का असफल होना देश के साफ-सुथरे भविष्य के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। अच्छा हो कि परिवर्तन अहिंसक आंदोलन के जरिए ही हो। कहीं हताशा में इसकी बागडोर उन हाथों न चली जाए जो बैलेट में नहीं बुलेट में विश्वास करते हैं। सरकार को भी अपने ढंग से इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना ही होगा। क्योंकि आम जनता परिवर्तन की मांग सत्ता गलियारों में लगातार पहुंचा रही है।
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प्रकाश प्रलयजी ने
कई दिनों बाद
अपनी हाजरी दर्ज कराई है
साथ ही ग्वालियर पहुंचने की
खबर भी पहुंचाई है
बधाई है,बधाई है।
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जनआंदोलन के फ्लॉप होने का निहितार्थ
पंडित सुरेश नीरव अरविंद पथिकजी ने अन्ना हजारे के फ्लॉप होते आंदोलन को लेकर जो समीक्षा की है वह बहुत ही सटीक है। दरअस्ल यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है।अन्ना का आंदोलन यदि फ्लॉप हो रहा है तो इसके निहितार्थ बिंदुवार यह हो सकते हैं
1.- कि जनता मोहभंग की स्थिति में हैं। और उसे इस आंदोलन से कोई सामाजिक परिवर्तन की भूमिका की आस नहीं रही है। कारण उनकी लचर रणनीति या कुछ ऐसे लोगों का वर्चस्व जिन्हें जनता अपना आदर्श मानने को तैयार नहीं।
2.- सरकार द्वारा जनता में यह संदेश पहुंचा देने में कामयाबी कि लोकपाल आएगा तो हमारी मर्जी से आएगा और हमारे ही अनुसार आएगा।बाकी सब ड्रामा है।
3.सभी सरकारी और गैर सरकारी दलों का संसद में लोकपाल विधेयक को लाने में एक-जैसा ही व्यवहार। संसद के बाहर की कथनी और भीतर की करनी में दोरंगापन।
4. अत्यंत दुखद पहलू यह कि भ्रष्टाचार को जनता द्वारा कोई मुद्दा न मानना।
5. आंदोलन को उन लोगों का भी समर्थन जिन्हें जनता पाक-साफ नहीं मानती।
कारण चाहे कुछ भी रहे हों मगर एक सामाजिक परिवर्तन का असफल होना देश के साफ-सुथरे भविष्य के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। अच्छा हो कि परिवर्तन अहिंसक आंदोलन के जरिए ही हो। कहीं हताशा में इसकी बागडोर उन हाथों न चली जाए जो बैलेट में नहीं बुलेट में विश्वास करते हैं। सरकार को भी अपने ढंग से इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना ही होगा। क्योंकि आम जनता परिवर्तन की मांग सत्ता गलियारों में लगातार पहुंचा रही है।
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